Book Title: Tilakmanjari
Author(s): Dhanpal Mahakavi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
तिलकमञ्जरी कथा
69. कथमिदानीम्...आत्मानं ऋषिजनस्य दर्शयिष्यामि 196.10f.. 70. कथमेकाकिनी पतिता शून्यायामिहाटव्याम् 198.26ff. 71. कथय केन प्रकारेण प्रगुणयामि त्वाम् 223.17ff. 72. कथं शिक्षिता एतावतः करणप्रयोगान् 158.29. 73. करग्रहणोत्सवम् आसादयिष्यति 160.19ff. 74. करटीकीटादापदं प्राप्तोऽसि 111.1. 75. कराग्रेण बाहमुले मामग्रहीत् 196.13. 76. करिष्यसि विफलक महागुणरत्नानां पात्रं शरीरलाभम् 167.1ff. 77. कष्टम् ! आगतः कोऽप्यनुपदी 195.6. 78. कष्टम् ! आभाषितो नाभीष्टजनः 193.2 79. कष्टम् । न संपन्नभीष्टम् 195.15. 80. कस्तवास्मिन्नास्ते 196.4. 81. कस्मान्महाकृपण इव मिथ्योत्तरै र्निवारयसि माम् 185.24ff. 82. कस्य कथयामि 196.9. 83. कस्य वा मुखेन ख्यापयामि प्राक्तनं ते निजकृत्यम् 223.24ff. 84. काकिणीमपि न ददाति 238.28. 85. कारय जीवनमुदारम् 170.6ff. 86. काहमुपदेशदाने 191.19ff. 87. किमनेन क्लिष्टफलयानया नरेन्द्रसेवयैव शासितेन भूयः कदर्थितेन कृषणेन 65.23ff. 88. किमप्यानन्दितोऽहम् 95.11. 89. किमिति कर्थितोऽयं त्वया आत्मा 43.1ff. 90. कि तवागमनकार्यमत्रोपजातम् 196.3ff. 91. किं तस्य वृत्तम् 130.16ff. 92. किं तु दुष्करमिदं मादृशानाम् 196.18. 93. किं पापकारिणि कृतः कारणमन्तरेण त्वयास्य निजस्य...विनाशो राजवंशस्य 179.27ff. 94. किं पुनरिद देवेन कारयितव्यम् 249.19. 95. किं पनरिदं विज्ञापयति 91.11ff. 96. किमन्योऽस्ति कश्चिन्मम तव स्थाने 196.19ff 97. किमहमावेदयामि मन्दभाग्या । दैवमत्र प्रष्ठव्यम् 200.1. 98. किमहिताह ते 196.19. 99. किं मुधा निधाय जानुनोपरि मूर्धानमवनतमुखी तिष्ठसि 196.11ff. 100. किमेतत्तदायत्तम् 230.16. 101. किं वारयसि, दैवेनैव वारिता 179.20. 102. किं वा ममतेन चिन्तितेन 114.17ff. 103. किं शिक्ष्यते तव 96.17. 104. कीनाशतां प्रतिपद्य 238.28.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474