Book Title: Tilakmanjari
Author(s): Dhanpal Mahakavi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
तिलकमऊजरी कथा
३११ 140. तथापि देव्या शरीरे दृढमप्रमत्तया भवितव्यम् 198.9. 141. तथाश्रता देवेनासीत् 99.14. 142. तदलमतिभूयसा विचारेण 168.19. 143. तदा अस्माद अन्तिकात् 221.2. 144. तदेवं स्थिते 167.5. 145. तदेष बद्द्वो मया ते पश्चिमः प्रार्थनाञ्जलि: 170.18. 146 तन्न कार्योऽधुना तावदस्मदागमनानुबन्धः 227.18. 147. तवावस्थानमहितस्य अध्यक्षमेव 192.20ff. 148. तस्यैव...पदायस्यति एनाम् 190.10ff. 149. न व्यतिरिच्यते किंचित् 190.22. 150. तिष्ठति स ते जीवितेश: 202.29ff. 151. तूष्णिका अभवत् 0.9. 152. तृणत्रुद्धिं बबन्ध 13.10. 153. तृणाय मन्यमाना स्त्रैणम् 182.24. 154. त्वमस्मामिरस्मै दातुमध्यवसितासि 192.12. 155. त्वया कर्णधारियाऽस्य वचने प्रत्रत्तिः 166.226f. 156. दत्तवदनक्षालना 245.27. 157. दत्ते पत्रं कुवलयततेरायतं चक्षुरस्याः 149.20. 158. दत्वाक्षतान् निर्गतान बन्धववृद्धासु 42 25. 159. दत्त्वा जीवनमतिप्रभूतम् 75.12. 160. दर्शन' तु यदेव देवः प्रसीदति तदैव करोति (use of the present tense in the sense
of future) 58.21. 161. दापय प्रयाणम् 170.7ff. 162. दीयतामितः अणं दृष्टिः 156 24. 163. दीर्घनिद्रायां शायितः 193.28. 164. दूग्मावर्जितानि सामाजिकमनांसि 158.27. 165. दूतमुखेन सख्य कृत्वा 187.28. 166. दुरात्मन् आत्मनैव निष्पादिर्ता विपदमीहशीमस्याः पश्यतों मनागपि न ते विच्छायता संजाता 180.10ff. 167. दुर्लभः पुनरीदृशे पुण्यसरसि शरीरत्यागः 198.17. 168. दूरमवसृतो मे सन्तानः 196.27. 169. दृढमायासितासि 42.32. 170. दृष्टं चाद्य चरणकमलद्यं देवस्य 58.8ff. 171. दृष्टश शीलवति ते शालीनता 196.12. 172. देवतार्चनकर्म निर्माणमगमत् 150.20. 173. देवस्येव किंचिदनकरोति 159.21. 174, देवानां प्रियेण 239.3.
४६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474