Book Title: Tilakmanjari
Author(s): Dhanpal Mahakavi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 404
________________ Index of Verses ३४९ Serial No. Beginning of the verse Page No. Verse No. mm M W २२९ १३९ . 13 Mmmmmow 2 . १२७ । . K तज्जन्मा जनकांद्विपत्र जरजः तत्राभूद्वसतिः श्रियामपर या तन्वंग्यास्त्वमिति प्रसादविशद तव राजहंस हंसीदर्शनमुदितस्य तस्मिन्नभूद्रिपुकलत्रकपोलपत्र तस्पोदायशाः समस्तसुभट तापं तन्वति वारिदात्यय इति ताम्बूलद्रवरागजितिरैः दत्ते पर कुवलयततेरायत 'दिशतु विरतिलाभानन्तर पार्श्वसर्पन दृश्यं भूमिभूतोऽस्य देव किमिह दृष्टे भवति नयनसृष्टया सममद्य दृष्ट्वा वाक्पतिराजस्य दृष्ट्वा वैरस्य वैग्स्यं देव्या विभ्रममदम पदमवसतेः ध्यानेनामृतवर्षिणा श्रवणयोः नमो जगन्नमस्याय नाटा श्रीरम्बुजानामरति मधुकृतां न स्वप्नेऽपि समाश्रिता रिपुजनं नित्यूिहपतगिरौ रतिगृहाः निरोर्बु पार्यते केन निःशेषवाङमयविदोऽपि जिनागमोक्ताः पर्यङकाग्रात्क्षणविनिहित पृष्ठप्रेवदूलीनां श्रुतिशिखरह सत् प्रबन्धानामनध्यायः प्रभात्प्रायाऽसी रजनिररुणज्योतिररुणं प्रणतवत्सल सकललोकालोकगोचर प्रसन्नगम्भीरपथा प्रसादपरया त्वया रचितप्रचुर प्रस्तावनादि पुरुषौ प्राकृतेषु प्रवन्धेषु . W 00 V १३८ १० ० ० १ ० ० १५७ २ २० " 1. Quoted by Hemicendra in his Kavyanusasana as an illustration of 'ive' in Utpreksa'. cf. RP (HRK). p. 18 Intro. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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