Book Title: Tattvarthadhigam Sutra Part 02
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Shripalnagar Jain S M Derasar Trust
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________________ 230 दयार्थाधिगमसूत्रम् [अध्यायः भवस्थकेवलिनः शेषकर्मकारणाभावाद् वेदनीयसम्भवाञ्च तदाश्रया ऐव परीषहा भवन्तीत्याह सूत्रम्-एकादश जिने // 9-11 // री-अस्य भाष्यम् भा०-एकादश परीषहाः सम्भवन्ति जिने घेदनीयाश्रयाः। तद्यथासामना क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकचयाशय्यावघरोगतृणस्पर्शमल " परीषहाः // 11 // ०-एकादशैव परीषहाः पूर्वोक्तचतुर्दशकमध्यादपनीय असून प्रज्ञाज्ञानालामाख्यास्त्रीन् एकादश शेषा भवन्ति वेदनीयकर्माश्रया जिने / मोहपुरासरेषु शानदर्शनापरणान्तरायेषु क्षयमात्यन्तिकमुपगतेषु घातिकर्मसु उत्पमसकलज्ञेयग्राहिनिरावरणज्ञानो जिनः केवलीतियावत् / तत्रान्त्योपान्त्ययोर्गुणस्थानयोर्जिनत्वं, तत्र सम्भवः // 11 // सर्वेषां परीषहकारणानां कर्मणामुदयसम्भवमङ्गीकृत्याहसूत्रम्-बादरसम्पराये सर्वे // 9-12 // भा०-चादरसम्परायसंयते सर्वे दार्विशतिरपि परीषहाः सम्भवन्ति // 12 // टी०-चादरः-स्थूलः सम्परायः-कषायस्तदुदयो यस्यासौ पादरसम्परायः संमतः। स च मोहप्रकृतीः कश्चिदुपशमयतीत्युपशमकः / कश्चित् क्षपयतीति क्षपकः / तत्र सर्वेषा माविशतेरपि क्षुदादीनां परीषहाणामदर्शनान्तानां सम्भव इति उक्ता गुणस्थानेषु यथासम्भवं परीषहाः // 12 // सम्प्रति कर्मप्रकृतिष्वन्तर्भावकथनायाह सूत्रम्-ज्ञानावरणे प्रज्ञाऽज्ञाने // 9-13 // भा०-ज्ञानावरणीयोदये प्रज्ञाऽज्ञानपरीषहौ भवतः // 13 // टी-प्रज्ञा चाज्ञानं च प्रज्ञाऽज्ञाने। प्रज्ञापरीषहोऽज्ञानपरीषहश्च ज्ञानावरणे भवतः। ज्ञानावरणक्षयोपशमात् प्रज्ञाऽज्ञानं च / सत्येव हि ज्ञानावरणे तस्य क्षयोपशमः / ज्ञानावरणोदवाच अप्रज्ञा-निर्बुद्धिकत्वमज्ञानं चेति / कथं पुनरिदमुभयं लभ्यते / 1 तुल्या हि संहिता अप्रज्ञा च ज्ञानं च अप्रज्ञाज्ञाने ज्ञानावरणोदये भवत इत्युभयथाऽपि स्पष्टं भाष्यम् // 13 // 'भवपरीषहा' इति -पाठः। २उत्तरगुण. ' इति -पाठः / 3 'रिदै लभ्यते ' इति: स-पाठः, •रिदमुदयं लभ्यते' इति तु च-पाठः /

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