Book Title: Tattvagyan Pathmala Part 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ लक्षण और लक्षणाभास तत्वज्ञान पाठमाला, भाग-१ अत: ये दोनों लक्षण अव्याप्ति दोष से युक्त हैं। शंकाकार - यदि गाय का लक्षण सींग मानें तो ......? प्रवचनकार - तो फिर वह लक्षण अतिव्याप्ति दोष से युक्त हो जावेगा; क्योंकि जो लक्षण लक्ष्य और अलक्ष्य दोनों में रहे, उसे अतिव्याप्ति दोष से युक्त कहते हैं। जिज्ञासु - यह अलक्ष्य क्या है ? प्रवचनकार - लक्ष्य के अतिरिक्त दूसरे पदार्थों को अलक्ष्य कहते हैं। यद्यपि सब गायों के सींग पाये जाते हैं, किन्तु सींग गायों के अतिरिक्त अन्य पशुओं के भी तो पाये जाते हैं। यहाँ 'गाय' लक्ष्य है और 'गाय को छोड़कर अन्य पशु' अलक्ष्य हैं, तथा दिया गया लक्षण 'सींगों का होना' लक्ष्य 'गायों' और अलक्ष्य गायों के अतिरिक्त अन्य पशुओं में भी पाया जाता है। अत: यह लक्षण अतिव्याप्ति दोष से युक्त है। लक्षण ऐसा होना चाहिये जो पूरे लक्ष्य में तो रहे, किन्तु अलक्ष्य में न रहे। पूरे लक्ष्य में व्याप्त न होने पर अव्याप्ति और लक्ष्य व अलक्ष्य में व्याप्त होने पर अतिव्याप्ति दोष आता है। जिज्ञासु- और असंभव ? प्रवचनकार - लक्ष्य में लक्षण की असंभवता को असंभव दोष कहते हैं। जैसे - 'मनुष्य का लक्षण सींग।' यहाँ मनुष्य लक्ष्य है और सींग का होना लक्षण कहा जाता है, अत: यह लक्षण असंभव दोष से युक्त है। ___ मैं समझता हूँ अब तो लक्षण और लक्षणाभासों का स्वरूप तुम्हारी समझ में अच्छी तरह आ गया होगा। श्रोता - आ गया ! अच्छी तरह आ गया !! प्रवचनकार - आ गया तो बताओ 'जिसमें केवलज्ञान हो, उसे जीव कहते हैं क्या जीव का यह लक्षण सही है? श्रोता - नहीं, क्योंकि यहाँ जीव 'लक्ष्य' है और केवलज्ञान 'लक्षण' । १. "लक्ष्यालक्ष्यवृत्त्यतिव्याप्तं यथा तस्यैव पशुत्वं।" - न्यायदीपिका : वीर सेवा मंदिर सरसावा, पृष्ठ : ७ २. "बाधितलक्ष्यवृत्त्यसम्भवि यथा नरस्य विषाणित्वम्।" - न्यायदीपिका : वीर सेवा मंदिर सरसावा, पृष्ठ :७ लक्षण संपूर्ण लक्ष्य में रहना चाहिए, किन्तु केवलज्ञान सब जीवों में नहीं पाया जाता है, अत: यह लक्षण अव्याप्ति दोष से युक्त है। यदि इस लक्षण को सही मान लें तो मति-श्रुतज्ञानवाले हम और आप सब अजीव ठहरेंगे। प्रवचनकार - तो मति-श्रुतज्ञान को जीव का लक्षण मान लो। श्रोता - नहीं ! क्योंकि ऐसा मानेंगे तो अरहंत और सिद्धों को अजीव मानना होगा; क्योंकि उनके मति-श्रुतज्ञान नहीं हैं। अत: इसमें भी अव्याप्ति दोष है। प्रवचनकार - तुमने ठीक कहा। अब कोई दूसरा श्रोता उत्तर देगा - जो अमूर्तिक हो उसे जीव कहते हैं, क्या यह ठीक है? श्रोता - हाँ, क्योंकि अमूर्तिक तो सभी जीव हैं, अत: इसमें अव्याप्ति दोष नहीं है। प्रवचनकार - यह लक्षण भी ठीक नहीं है। यद्यपि इसमें अव्याप्ति दोष नहीं है, किन्तु अतिव्याप्ति दोष है; क्योंकि जीवों के अतिरिक्त आकाशद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और कालद्रव्य भी तो अमर्तिक हैं। उक्त लक्षण में 'जीव' है लक्ष्य और 'जीव के अतिरिक्त अन्य द्रव्य यानी अजीव द्रव्य' हुए अलक्ष्य । यद्यपि सब जीव अमूर्तिक हैं; किन्तु जीव के अतिरिक्त आकाशादि द्रव्य भी तो अमूर्तिक हैं, मूर्तिक तो एकमात्र पुद्गल द्रव्य ही है, अत: उक्त लक्षण लक्ष्य के साथ अलक्ष्य में भी व्याप्त होने से अतिव्याप्ति दोष से युक्त है। यदि 'जो अमूर्तिक सो जीव' ऐसा माना जायगा तो फिर आकाशादि अन्य चार द्रव्यों को भी जीव मानना होगा। शंकाकार - यदि आत्मा का लक्षण वर्ण-गंध-रस-स्पर्शवान माना जाय तो? प्रवचनकार - यह बात तुमने खूब कही ! क्या सो रहे थे ? यह तो असम्भव बात है। आत्मा में वर्णादिक का होना संभव ही नहीं है। इसमें तो असंभव नाम का दोष आता है, ऐसे ही दोष को तो असंभव दोष कहा जाता है। शंकाकार - इन लक्षणों में तो आपने दोष बता दिये, तो फिर आप बताइये न कि जीव का सही लक्षण क्या होगा ? प्रवचनकार - जीव का सही लक्षण चेतना अर्थात् उपयोग है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा है- 'उपयोगो लक्षणम्।' न इसमें अव्याप्ति दोष है, क्योंकि चेतना (9) DShrutishs.6.naishnuiashvhaskathaskabinetvupamPatmalaPart-1

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32