Book Title: Tattvagyan Pathmala Part 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ लक्षण और लक्षणाभास (उपयोग) सभी जीवों के पाया जाता है और न अतिव्याप्ति दोष है, क्योंकि उपयोग जीव के अतिरिक्त किसी भी द्रव्य में नहीं पाया जाता है, और असंभव दोष तो हो ही नहीं सकता है, क्योंकि सब जीवों के उपयोग (चेतना) स्पष्ट देखने में आता है 1 १८ इसीप्रकार प्रत्येक लक्षण पर घटित कर लेना चाहिये और नवीन लक्षण बनाते समय इन बातों का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। श्रोता - एक-दो उदाहरण देकर और समझाइये न ? प्रवचनकार - नहीं, समय हो गया है। मैंने एक उदाहरण अंतरंग यानी आत्मा का और एक उदाहरण बाह्य यानी गाय, पशु आदि का देकर समझा दिया हैं, अब तुम स्वयं अन्य पर घटित करना। यदि समझ में न आवे तो आपस में चर्चा करना। फिर भी समझ में न आवे तो कल फिर मैं विस्तार से अनेक उदाहरण देकर समझाऊँगा । ध्यान रखो समझ में समझने से आता है, समझाने से नहीं; अतः स्वयं समझने के लिए प्रयत्नशील व चिन्तनशील बनना चाहिए। प्रश्न १. लक्षण किसे कहते हैं ? २. लक्षणाभासों में कितने प्रकार के दोष होते हैं ? नाम सहित लिखिए। ३. निम्नलिखित में परस्पर अंतर बताइये - --- (क) आत्मभूत लक्षण और अनात्मभूत लक्षण । (ख) अव्याप्ति दोष और अतिव्याप्ति दोष । ४. निम्नलिखित कथनों की परीक्षा कीजिए - (क) जो अमूर्तिक हो उसे जीव कहते हैं। (ख) गाय को पशु कहते हैं। (ग) पशु को गाय कहते हैं। (घ) जो खट्टा हो उसे नींबू कहते हैं। (च) जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण हो उसे पुद्गल कहते हैं। ५. अभिनव धर्मभूषण यति के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए । (10) पाठ ४ पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ कविवर पण्डित बनारसीदास (व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) अध्यात्म और काव्य दोनों क्षेत्रों में सर्वोच्च प्रतिष्ठाप्राप्त पण्डित बनारसीदासस सत्रहवीं शताब्दी के रससिद्ध कवि और आत्मानुभवी विद्वान् थे । आपका जन्म श्रीमाल वंश में जौनपुर निवासी लाला खरगसेन के यहाँ सं. १६४३ में माघ सुदी एकादशी, रविवार को हुआ था। उस समय इनका नाम विक्रमजीत रखा गया था; परन्तु बनारस की यात्रा के समय पार्श्वनाथ की जन्मभूमि वाराणसी के नाम पर इनका नाम बनारसीदास रखा गया। बनारसीदास के कोई भाई न था, पर बहिनें दो थीं। आपने अपने जीवन में बहुत ही उतार-चढ़ाव देखे थे। आर्थिक विषमता का सामना भी आपको बहुत बार करना पड़ा था तथा आपका पारिवारिक जीवन भी कोई अच्छा नहीं रहा। आपकी तीन शादियाँ हुई, ९ सन्तानें हुई, ७ पुत्र एवं २ पुत्रियाँ; पर एक भी जीवित नहीं रहीं। उन्होंने 'अर्द्धकथानक' में स्वयं लिखा है DjShrutesh5.6.04|shruteshbooks hookhinditvayan Patmala Part-1 कही पचावन बरस लौं, बानारस की बात । तीनि बिवाह भारजा, सुता दोइ सुत सात ।। नौ बालक हुए मुए, रहे नारि-नर दोइ । ज्यों तरुवर पतझार है, रहे ठूंठ से होई।। १. अर्द्धकथानक हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय मुम्बई, पृष्ठ ११ २. वही, पृष्ठ : ३२ ३. वही, पृष्ठ ७१

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