Book Title: Tattvagyan Pathmala Part 1 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 2
________________ पाठ१ | श्री सीमन्धर पूजन हिन्दी: प्रथम आठ संस्करण : ३० हजार १०० (१९६९ से अद्यतन) नवम संस्करण : २ हजार (वीरशासन जयन्ती, २२ जुलाई २००५) योग : ३२ हजार १०० अंग्रेजी : दो संस्करण : ५ हजार २०० गुजराती: प्रथम संस्करण : २ हजार १०० महायोग : ३९ हजार ४०० विषय-सूची क्र. नाम पाठ लेखक पृष्ठ १. श्री सीमन्धर पूजन डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर ०३ २. सात तत्त्व सम्बन्धी भूलें पं. रतनचन्द भारिल्ल, जयपुर ३. लक्षण और लक्षणाभास डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर ४. पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ श्री नेमीचन्द पाटनी, आगरा ५. सुख क्या है? डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर ६. पंच भाव पं. खीमचंद जेठालाल सेठ, सोनगढ़ ३५ ७. चार अभाव डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर ८. पाँच पाण्डव डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर ५१ ९. भावना बत्तीसी श्री जुगलकिशोर 'युगल', कोटा ६० प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करने हेतु ३०००/- रुपये श्री मगनमल सौभागमल पाटनी फैमिली चैरिटेबल ट्रस्ट, मुंबई द्वारा सधन्यवाद प्राप्त हुए। स्थापना भव-समुद्र सीमित कियो, सीमन्धर भगवान । कर सीमित निजज्ञान को, प्रगट्यो पूरण ज्ञान ।। प्रकट्यो पूरण ज्ञान-वीर्य-दर्शन सुखधारी, समयसार अविकार विमल चैतन्य-विहारी। अंतर्बल से किया प्रबल रिपु-मोह पराभव, अरे भवान्तक! करो अभय हर लो मेरा भव ।। ॐ हीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्, आह्वाननम् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ, ठः ठः, स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्, सन्निधिकरणम्। जल प्रभुवर ! तुम जल-से शीतल हो, जल-से निर्मल अविकारी हो। मिथ्यामल धोने को जिनवर, तुम ही तो मल-परिहारी हो ।। तुम सम्यग्ज्ञान जलोदधि हो, जलधर अमृत बरसाते हो। भविजन-मन-मीन प्राणदायक, भविजन मन-जलज खिलाते हो।। हे ज्ञानपयोनिधि सीमन्धर ! यह ज्ञान प्रतीक समर्पित है। हो शान्त ज्ञेयनिष्ठा मेरी, जल से चरणाम्बुज चर्चित है।। ॐ हीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन चंदन-सम चन्द्रवदन जिनवर, तुम चन्द्रकिरण से सुखकर हो। भव-ताप निकंदन हे प्रभुवर ! सचमुच तुम ही भव-दुख-हर हो।। जल रहा हमारा अन्तःस्तल, प्रभु इच्छाओं की ज्वाला से। यह शान्त न होगा हे जिनवर रे ! विषयों की मधुशाला से ।। चिर-अंतर्दाह मिटाने को, तुम ही मलयागिरि चन्दन हो। चंदन से चरचूँ चरणांबुज, भव-तप-हर ! शत-शत वन्दन हो ।। ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । १. ज्ञान को पर से हटा कर अपने में ही लगाना मुद्रक : प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर मूल्य : पाँच रुपए (2) DShruteshs.6.naishnuiashankshankabinaleevupamPatmalaPart-1Page Navigation
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