Book Title: Tattva Samucchaya Author(s): Hiralal Jain Publisher: Bharat Jain Mahamandal View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथ के साथ सरल हिन्दी अनुवाद है और विशेष शब्दों का कोष भी है। इस कोप में शब्द वर्णानुक्रम से उनके संस्कृत रुपान्तर में रखे गये है, जिस से कहीं भो उल्लिखित शब्द का अर्थ सरलता से देखा जा सके। प्राय: चर्चा में तथा पठन पाठन में संस्कृत शब्दों का ही व्यवहार किया जाता है। शब्द का प्राकृत रूप जहां वह अधिक भिन्न है, कोष्टक में दे दिया गया है। पाठों में आये प्राकृत शब्दों का रूपान्तर भाषान्तर में आ ही गया है। इस कोष के शब्दों को का?पर लिखने में मेरे प्रिय शिष्य जगदीश किलेदार एम. ए. ने मेरी सहायता की। और उनपर से प्रेसकापो तैयार करने में भारत जैन महामंडल के स्थायी कार्यकर्ता श्री जमनालालजी जैन की धर्मपत्नी सौ. विजयादेवी ने साहाय्य प्रदान किया है। इसके लिये मैं उन्हें धन्यवाद तो क्या दे आशीर्वाद देता हूं कि वे अपने ज्ञान में खूब उन्नति करें। इस पंथ के तैयार करने की पूर्वोक्त प्रकार प्रेरणा मिलनेपर भी संभवतः पाठकों को उसके दर्शन इतने शीघ्र न हो पाते यदि भारत जैन महामंडल के अति निष्ठावान कार्याध्यक्ष व मेरे परम स्नेही श्री ऋषभदासजी रांका का उसके लिये जब से मैने चर्चा की तभी से अति आग्रह न होता। इस सत्कार्य की प्रेरणा के लिए में उनका अनुग्रहीत हूं। एक तो संकलन कार्य में स्खलन होना-न छोड़ने योग्य को छोड़ बैठना और छोड़ने योग्य को ले बैठना-बहत संभव है। इस संबन्ध में मतभेद भी बहुत हो सकता है। दूसरे प्राकृत पाठ का मुद्रण व संशोधन भी बड़ा कठिन होता है। सिद्धान्त का अर्थ करने में भी जरा प्रमाद हुआ कि कुछ न कुछ भूलचूक हो ही जातो है। मुझे यह सब कार्य भी बड़ी व्यग्रता के काल में से कुछ क्षण निकाल निकाल कर करना पड़ा है। अतएव यदि कहीं कोई अशुद्धियां पाठकों को दष्टि में आवें, या संकलन में होनाधिकता जान पड़े तो सूचित करने की कृपा करें, ताकि आग संशोधन किया जा सके। यदि इस संकलन के द्वारा जैन धर्म के जिज्ञासुओं को कुछ तृप्ति हो सकी व विद्यार्थियों को प्राकृत एवं जैन साहित्य व सिद्धान्त में प्रवेश पाने में सुलभता प्राप्त हो सकी तो मैं अपने प्रयास को सफल समझंगा। नागपुर महाविद्यालय, । नागपूर २६-१२-१९५१ - हीरालाल जैन For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 210