Book Title: Tattva Samucchaya Author(s): Hiralal Jain Publisher: Bharat Jain Mahamandal View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन प्रस्तुत संकलन की प्रेरणा मुझे अपनी प्राकृत कक्षाओं को पढ़ाते समय मिली। प्राकृत साहित्य का बहु भाग जैनधर्म से सम्बंध रखता है, और बिना जैन के आचार व सिद्धान्त का विधिवत् ज्ञान हुए वह साहित्य अच्छी तरह समझ में नहीं आता, क्योंकि पद पद पर वह जैन पारिभाषिक शब्दों से भरा हुआ है । स्फुट रूप से प्रसंगोपयोगी बात को समझा देने पर भी वह विद्यार्थियों के हृदय पर स्थायी रूप से अंकित नहीं हो पाती, क्योंकि जब तक एक दार्शनिक बात उसकी पूरी सांगोपांग व्यवस्था में बैठाकर न बतलाई जाय तब तक न तो उसका यथार्थ ज्ञान हो पाता, और न स्मरण रह सकता। इसलिये यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि प्राकृत के कुछ ऐसे संकलन उपस्थित किये जाँय जिन में विद्यार्थियों को प्राकृत भी पढ़ने पढ़ाने के लिये मिले और साथ-ही-साथ जैन धर्म का आवश्यक ज्ञान भी व्यवस्था से प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त उनके हाथ में ऐसी एक पुस्तक भी रहे जिसके आधार से वे किसी भी सैद्धान्तिक परिभाषा व व्यवस्था का प्रामाणिक उल्लेख कर सकें । इस संकलन में सोलह पाठ हैं जिनमें जैनधर्म से सम्बन्ध रखने वाली प्राय: सभी नैतिक, आध्यात्मिक व दार्शनिक व्यवस्थाओं की रूपरेखा अति प्रामाणिक ग्रंथों पर से प्रस्तुत की गई हैं। प्रत्येक पाठ के अन्त में ग्रंथों का नाम भी दे दिया गया है और प्रत्येक गाथा के संख्याक्रम के पश्चात् उसके मूल ग्रंथ का अध्याय और पद्य की संख्या भी दे दी गई है। इस से एक तो यदि पाठक चाहे तो उस गाथा के अर्थ का विस्तार व पूर्वापर प्रसंग मूल ग्रंथ में सुलभता से देख सकता है । और दूसरे वह इसका प्रामाणिक उल्लेख भी कर सकता है । पाठों का क्रम भी ऐसा रखा गया है कि आरम्भ में वर्णनात्मक व आचार नीति आदि सम्बंधी पाठ हैं, और पश्चात् क्रम से सैद्धान्तिक तत्त्वविवेचन के पाठ आये हैं जिनके लिये विद्यार्थी को मानसिक भूमिका तैयार होती गई है। समस्त पाठों में गाथाओं की कुल संख्या ६०० के लगभग है । यदि विद्यार्थी नित्य नियम से औसतन दो गाथाओं का अर्थ समझ ले व उन्हें पाठ भी कर ले तो, अनध्याय के लगभग दो माह छोड़कर भी, वह एक वर्ष के भीतर ग्रंथ का पारायण कर सकता है। जहां विद्यार्थी पर अन्य विषयों का भी भार है, व सिद्धान्त ग्रहण की पूरी योग्यता नहीं है, वहां पहले सात-आठ पाठ प्रथम वर्ष में व शेष द्वितीय वर्ष में पढ़े जा सकते हैं । For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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