Book Title: Taporatna Mahodadhi Author(s): Bhaktivijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना सपोरत्नमहोदधि ॥४॥ AURAHARIUSIMARA प्रगट करवानी आ सभानी इच्छा प्रथम न वधी परंतु सभा पासे आ ग्रन्थनी मागणीना विशेष विशेष पत्रो आवंवा लाग्या, जेथी सख्त मोघवारी चालती होवा छतां पण आ बीजी आवृत्ति प्रकट करवानो निर्णय थतां आजे ते प्रगट करवामां आवे छे. जैन साहित्य, इतिहास, कथा, तत्वज्ञान, आचारविचार, आवश्यक क्रिया अने चरित्रो विगेरेना अनेक ग्रन्थो प्रकट थाय छे, छतां तप संबंधीना आवी रीते विधिविधानपूर्वकना अन्य ग्रंथो प्रसिद्ध थयेला जोवामां आव्या नथी. कर्मने तोडी मोक्ष मेळववा माटेर्नु तपोविधान, शास्त्रामा मुख्य स्वीकारायेल होवाथी घरे घरे तेनी उपयोगिता माटे जरुरीयात तो छे ज, तेथी | आ ग्रंथनी अनेक आवृत्तिओ थाय तेम पण आ सभा इच्छे छे. प्रथम आवृत्तिना संशोधक, संपादक शांतमूर्ति प्रवर्तकजी महाराजश्री कान्तिविजयजी महाराजना स्वर्गवासी शिष्य चारित्रपात्र मुनिराज श्री भक्तिविजयजी महाराज हता अने तेओ साहेबे घणा परिश्रमे आ ग्रंथ तैयार करी सभाने सुप्रत न कर्यो होत तो आ बीजी आवृत्ति पण प्रगट न थात, तेटलुंज नहिं पण तेओ साहेबनो जैन समाज उपरनो आ महान उपकार पण नहिं भूली शकाय तेवो होबाथी आ सभा ते कृपालश्रीनो आ वखते पण उपकार मान्या सिवाय रहेती नथी. तेओ साहेबर्नु आ स्मारक तो कायम रहेशे ज तेम मानवू अस्थाने नथी. आ ग्रन्थ तप संबंधीनो होवाथी तेनो महिमा-महात्म्य अने जरुरीयात विगेरे माटे केटलुक विवेचन आप, ते अहिं जरुरी होवाथी, तेमज धर्मशास्त्रोमा तपने महत्व- केवु स्थान अपायेलं छे अने ते मोक्ष मेळववा माटे केवु अपूर्व महामंगळ विधान छ ? ते पण जाणवानी आवश्यकता छे. ॥४॥ For Private Personal use only Jain Education InternationalPage Navigation
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