Book Title: Sutrkritang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ विषया श्रीसूत्रकृताङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 1 // नक्रमः क्रमः 1. 1 // श्रीसूत्रकृताङ्गसूत्रस्य विषयानुक्रमः॥ प्रथमश्रुतस्कन्धस्य सूत्राणि-(१-४)(६३२-६३५)=४, सूत्रगाथा:-(१-६३१)=६३१, नियुक्तिगाथा:-(१-१४१)=१४१ विषयः सूगा० नियुक्तिः पृष्ठः | क्रमः विषयः सू०गा० नियुक्तिः पृष्ठः // प्रथम सू० गा० 1.1.5 करण-कारक-कृतानां निक्षेपाः समयाऽध्ययनम्॥ (1-88) 1-35 1-98 (6) द्रव्यकरणे मूलोत्तराभ्यांप्रयोगः, प्रथमाऽध्ययने व्यञ्जनोपस्काराभ्यां उत्तरं- शरीराणि प्रथमोद्देशकः सू० गा०१-२७ करणादीनि इन्द्रियाणि विषादिपरिणामो (पञ्चभूताद्यधिकारः)। (1-27) 1-35 1-55 वा, संघातनादिभिरजीवे प्रयोग:-विद्युदादिषु 1.1.1 मङ्गलं-पूर्वसूरिव्याख्यातस्य विश्रसा- क्षेत्रे इक्षुक्षेत्रादि- काले बवादि, व्याख्या, उपोद्घात:। भावे प्रयोगे उत्तरे कलासु श्रुतयौवनानि मङ्गलादि। भोजनादिना वर्णादि च, विश्रसा 1.1.3 सूत्रकृतो नामत्रयम्। छायातपदुग्धादिषु / __- 4-15 5-10 1.1.4 सूत्रनिक्षेपः (4) 2 द्रव्ये 1.1.6 त्रिविधयोगशुभध्यानाध्यवसायपोण्डगादि, भावे संज्ञा स्वसमयैः प्रकृतम्। संग्रहवृत्तिजातिभेदम्, |1.1.7 रचनायां स्थित्यनुभावबन्धाअन्त्ये कथ्य-गद्यपद्यगेयानि। - 3 4 द्यवस्था, सूत्रकृताङ्गकरणरीतिः, 1.1.2 मडला
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