Book Title: Sutrkritang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीसत्र श्रीसूत्रकृताङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 3 // कृतास्य विषयानुक्रमः 46 क्रमः विषयः सू० गा० नियुक्तिः पृष्ठः | क्रमः विषयः सू० गा० नियुक्तिः पृष्ठः अफलदुग्धत्वादि नाद्रुमगोत्वे नीतिजम्। (28-30) - 55-58 हेतुः। - 34-35 43 / नियतानियतयोरवेदनात् 4-5 1.25 पञ्चभूतात्मषष्ठानां नित्यता, संसारः। (31-32) - उत्पादनाशाभाव: 1.2.3 मृगवत् अस्थानाशङ्किन: (सत्कार्यवादः)। ___15-16 - 44-45 अज्ञातपाशमोचनोपाया:,मगवनश्यन्ति 1.1.26 स्कन्धपञ्चकं- अन्यानन्यते अज्ञानिका स्वस्याज्ञानवादिनः परेषां हेत्वहेतुकत्वे (क्षणिकवादः)।१७ म्लेच्छानुभाषिता, तन्न, 1.1.27 चातुर्धातुकं जगत्, अकृतवेदनादिनोत्तरम विमार्शानुशासनयोर्मूकवत् 6-22 (क्षणक्षयसमाधानम्)। 18 - अन्धवच्चाभावात्। (33-49) - 60-68 1.1.28 दर्शनाङ्गीकारात् मोक्षः। तन्न, |1.2.4 स्वपरप्रशंसागऱ्यावतोः ओघसंसारगर्भजन्मदु:खमार्गगामिता तेषां संसारः। 23(50) . संसारभ्रमः गर्भानन्त्यञ्च / 19-27 - 52-54 |1.2.5 अव्यक्तसावा (प्राणि- प्राणिज्ञानादिभिर्भङ्गाः प्रथमाऽध्ययने आदानत्रयम्, भावविशुद्ध्या द्वितीयोद्देशकः सू० गा०१-३२ निर्वाणं-पुत्रपल- 24-28 (नियत्यादिचतुरधिकारः)। (28-59) - 55-75 भोजनवत् न बन्धः)। (51-55) - सत्त्वा औपपातिकाः पृथक् द्विष्टमनस: सातावादिनः न संवृतता, सुखादिवेदिन: संसारभ्रमिणश्च, अन्धाश्राविणीनौचारिवत् 29-32 परं तेषां सैद्धिकं असैद्धिकं 1-3 संसारमजनं च। (56-59) - 1.2.6
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