Book Title: Sutrakritanga me Varnit Darshanik Vichar
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 10
________________ | 120 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क तप द्वारा कर्म क्षय कर कर्मबन्ध के कारणों- मिथ्याव, अविरति. कषाय, प्रमाद एवं योग से दूर रहना ही सर्वदुःख-मुक्ति का मार्ग है। उपर्युक्त मतवादी स्वयं दु:खों से आवृत्त हैं क्योंकि वे संधि को जाने बिना क्रिया में प्रवृत्त हो जाते हैं, परिणामस्वरूप धर्म तत्त्व सं अनभिज्ञ रहते हैं। जब तक जीवन में कर्मबन्ध का कारण रहेगा तब तक मनुष्य चाहे पर्वत पर चला जाये या कहीं रहे... वह जन्म - मृत्यु, जरा-व्याधि, गर्भवासरूप संसारचक्र परिभ्रमण के महादु:खों का सर्वथा उच्छेद नहीं कर सकता। ऐसे जीव ऊँच-नीच गतियों में भटकते रहते हैं, क्योंकि एक तो वे स्वयं उक्त मिथ्यावादों के कदाग्रहरूप मिथ्यात्व से ग्रस्त हैं, दूसरे हजारों जनसमुदाय के समक्ष मुक्ति का प्रलोभन देकर उन्हें मिथ्यात्व विष का पान कराते हैं। नियतिवाद- नियतिवाद आजीविकों का सिद्धान्त है। मखलिपुत्तगोशालक नियतिवाद एवं आजीवक सम्प्रदाय का प्रवर्तक था। सूत्रकृतांग के प्रथमश्रुतस्कन्ध में गोशालक या आजीवक का नामोल्लेख नहीं है, परन्तु उपासकदशांग के सातवें अध्ययन के सहालपुत्र एवं कुण्डकोलिय प्रकरण में गोशालक और उसके मत का स्पष्ट उल्लेख है। इस मतानुसार उत्थान, कर्मबल, वीर्य, पुरुषार्थ आदि कुछ भी नहीं हैं। सब भाव सदा से नियत हैं : बौद्ध ग्रंथ दीघनिकाय, संयुक्तनिकाय आदि में तथा जैनागम स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञति, औपपातिक आदि में भी आजीवक मतप्रवर्तक नियतिवादी गोशालक का वर्णन उपलब्ध है। नियतिवादी जगत् में सभी जीवों का पृथक व स्वतन्त्र अस्तित्व मानते हैं। परन्तु आत्मा को पृथक्-पृथक् मानने पर भी नियतिवाद के रहते जीव स्वकृत कर्मबंध से प्राप्त सुख-दुःखादि का भोग नहीं कर सकेगा और न ही सुख–दु:ख भोगने के लिये अन्य शरीर, गति तथा योनि में संक्रमण कर सकेगा। शास्त्रवार्तासमुच्चय में नियतिवाद के संबंध में कहा गया है कि चूंकि संसार के सभी पदार्थ स्व-स्व नियत स्वरूप से उत्पन्न होते हैं अत: ये सभी पदार्थ नियति से नियमित होते हैं। यह समस्त चराचर जगत् नियति से बंधा हुआ है। जिसे, जिससे, जिस रूप में होना होता है, वह उससे, उसी समय, उसी रूप में उत्पन्न होता है। इस प्रकार अबाधित प्रमाण से सिद्ध इस नियति की गति को कौन रोक सकता है? कौन इसका खंडन कर सकता है? नियतिवाद काल, स्वभाव, कर्म और पुरुषार्थ आदि के विरोध का भी युक्तिपूर्वक निराकरण करता है। नियतिवादी एक ही काल में दो पुरुषों द्वारा सम्पन्न एक ही कार्य में सफलता-असफलता, सुख-दु:ख का मूल नियति को ही मानते हैं। इस प्रकार उनके मन में नियति ही समस्त जागतिक पदार्थों का कारण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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