Book Title: Sutrakritanga me Varnit Darshanik Vichar
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 16
________________ 126 जिनवाणी- जैनागम साहित्य विशेषाङ्क जन्म में वैसा ही होगा, तो दान अध्ययन, जप तप अनुष्ठान व्यर्थ हो जायेंगे, फिर भला क्यों कोई दान करेग या यम-नियमादि की साधना करेगा। आधाकर्मदोष -सूत्रकृतांग की ६० से ६३ तक की गाथाएं निर्ग्रन्थ आहार से संबद्ध हैं। श्रमणाहार के प्रसंग में इसमें आधाकर्मदोष से दूषित आहारसेवन से हानि एवं आहारसेवी की दुर्दशा का निरूपण किया है। यदि साधु का आहार आनाकर्मदोष से दूषित होगा तो वह हिंसा का भागी तो होगा ही. साथ ही उसके विचार, संस्कार एवं उसका अन्तःकरण निर्बल हो जायेगा। दूषित आहार से साधु के सुखशील, कषाययुक्त एवं प्रमादी बन जाने का खतरा है। आधाकर्मी आहार ग्राही साधु गाढ़ कर्मबन्धन के फलस्वरूप नरक. तिर्यच आदि योनियों में जाकर दुःख भोगते हैं। उनकी दुर्दशा वैसी ही होती है जैसे बाढ़ के जल के प्रभाव से प्रक्षिप्त सूखे व गीले स्थान पर पहुंची हुई वैशालिक मत्स्य को मांसार्थी डंक व कंक (क्रमश: चील व गिद्ध ) पक्षी सता - सताकर दुःख पहुंचाते हैं।" वर्तमान सुख के अभिलाषी कई श्रमण वैशालिक मत्स्य के समान अनन्तबार दुःख व विनाश को प्राप्त होते हैं। मुनिधर्मोपदेश - सूत्रकृतांग की ७६ से ७९ तक की गाथाओं में शास्त्रकार ने निर्ग्रन्थ हेतु संयम, धर्म एवं स्वकर्तव्य बोध का इस प्रकार निरूपण किया है ما) ن १. पूर्वसंबंध त्यागी, अन्ययूधिक साधु, गृहस्थ को समारम्भयुक्त कृत्यों का उपदेश देने के कारण शरण ग्रहण करने योग्य नहीं है। २. विद्वान मुनि उन्हें जानकर उनसे आसक्तिजनक संसर्ग न रखे। ३. परिग्रह एवं हिंसा से मोक्ष प्राप्ति मानने वाले प्रव्रज्याधारियों का संसर्ग छोड़कर निष्परिग्रही, निरारम्भ महात्माओं की शरण में जाये । ४. आहारसंबंधी ग्रासैषणा, ग्रहणैषणा, परिभोगषणा, आसक्तिरहित एवं रागद्वेषमुक्त होकर करे । अहिंसाधर्म निरूपण - अहिंसा को यदि जैन धर्म-दर्शन का मेरुदण्ड कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसलिए जैनागमों में अहिंसा को विस्तृत चर्चा की गई है। सूत्रकार ने भी कुछ सूत्रों में अहिंसा का निरूपण किया है। संसार के समस्त प्राणी अहिंस्य हैं, क्योंकि--- ९. इस दृश्यमान त्रस स्थावर रूप जगत् की मन, वचन, काय की प्रवृत्तियां अथवा बाल, यौवन, वृद्धत्व आदि अवस्थाएँ स्थूल हैं. प्रत्यक्ष हैं। २. स्थावर जंगम सभी प्राणियों की पर्याय अवस्थाएं सदा एक सी नहीं रहती । ३. सभी प्राणी शारीरिक, मानसिक दुःखों से पीड़ित है अर्थात् सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय हैं। उपर्युक्त मन पर शंका व्यक्त करते हा कल मनलागी आत्मा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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