Book Title: Sutrakritanga me Varnit Darshanik Vichar
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 20
________________ | 130 . जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क ३५. असतकरणादपा ग्रहणात् स्वसंभवाभावात्। शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभाव सत्कार्यम् ।। सां.का. ९ (गौड़पाद भाष्य) :ईश्वर-कृष्ण, ह.क.चौ.काशी, वि.सं. १५:७५ ३६. सूत्रकलांग की शीलांकावृत्ति पत्रांक २४-२५ ३६. सूत्रकृतांग सूत्र ५.१.१७-१८ २८. दीघनिकाय १.१ (अनुवाद-भिक्षु राहल साकल्याय एवं जगदीश कश्यप, प्रका. भारतीय बौद्ध शिक्षा परिष्ट, बुद्धविहार, लखना) ३१ मज्झिमनिकाय-१.१.२ ४०. ...पुन न परं भिक्रतुवे, भिक्खु, इममेवं कायं यथाठितं यथापणिहितं धदुसोपच्चवेक्वति-अत्थि इमस्मिकाये पधवी धातु, आपधातु, तेजोधानु, वायुधातु ति सुत्तपिटक मज्जि. पलि भग ३. पृ. ५५३ ४१ सूत्रकृतांग-१.१.१९-२१ ४२ तेणाविमं संधि णंच्या णं ण ने धम्मविउजगा। जे तु वाइगो एवं ण ते आहतराऽऽहिया।।वही १.१.२० ४३. सूत्रकृतांग, शीलांक वृत्ति २८ ४४. सूत्रकृतांगसूत्र १.२.२८-३१, गोम्मटसार कर्मकाण्ड-८९२ (प्रकाशक परामत प्रभावक औन मण्डल, बम्बई, वी.नि.स.२४५३) ४५. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग २. पृ. १३८ ४६. नियतेनैव भावेन सर्वे भावा भवन्ति यत्। ततो नियतिजा होते तत्स्वरूपानुवेधतः ।। शास्त्रवार्तासमुच्चय २.६१ ४७. कर्म का जिस रूप में बंध हुआ उसको उसी रूप में भोगना अर्थात उद्रर्तना, अपवर्तना, संक्रमण और उदीरणा अवस्थाओं का न होना निकाचित कविस्था कहलाती है। गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा ४४ ४८. सूत्रकृतांगसूत्र १.२.३३-५० ४९. जाविगो मिना जहासना परिवाणेणज्जिया, असकियाई संकति संकियाई असंकिणो। वही १.२.३३ ५०. वहीं, पृ. ५१ ५१. सूत्रकृतांग सूत्र पृ. ३३ ५२. वही १.२.५६-५६ ५३. अहं हि सीह : अकिरियं वदामि काप्दुन्चरितस्स वोदुञ्चतिस्व. मादुच्चरितस्य अनेक विहितान पापकान अकुसलानं अकिरियं वदानि सुनपिटके अगुत्तर निकाय, पालि भाग ३, अट्ठकगिपात पृ. २९३-९६ ५४. सूत्रकृतांगचूर्णि मू.प. टि. पृ.९ ।। ५५. पुत्तं पिन समारंभ आहारट्ठ असंजये। भुजमाणो वि मेहावी कम्मुणा णो व लिप्यते ।।- सूत्रकृतांग १.२/७५ ५.६. सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक ३७-४० ५७. सूत्रकृतांगसूत्र--१.३.६४ ६९ ५८. वही पृ. ६७ ५९. (१.) न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकरय राजति प्रः। न कर्मफलसंयोग स्वभावस्तु प्रवर्तते ।। गौना ।५.१४ (२) गीता शां.भा. ५.१४ ६०. सत्राटांगसत्र-१.३.७०.७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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