Book Title: Sutrakritang Sutra Dipika Dwitiya Vibhag
Author(s): Harshkulgani
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 9
________________ श्री सूत्रकृताङ्गदीपिका वणमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासादिए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे ॥४॥ 'तीसेणं ति' तस्यां पुष्करिण्यां, 'णं वाक्यालंकारे' मध्यदेशे एकं पद्मवरम् एव पुण्डरिकम् उक्तं, शेषव्याख्या पूर्ववत् ॥४॥ सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपुंडरीआ बुइआ अणुपुव्वट्ठिआ जाव पडिरूवा, सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपुंडरीए बुइए अणुपुव्वट्ठिए जाव पडिरूवे ॥५॥ 'सव्वावंति ति सर्वस्याऽपि च तस्याः पुष्करिण्याः सर्वप्रदेशेषु बहूनि पद्मानि तथा सर्वस्याश्च तस्याः बहुमध्यदेशे पूर्वोक्तविशेषेण विशिष्टं महदेकं पौण्डरीकं विद्यते इति ॥५॥ अह पुरिसे पुरत्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरिणीं तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा पांसादीअं महं एगं पउमवरपुंडरीअं अणुपुव्वट्ठिअं ऊसिअं जाव पडिरूवं, तए णं से पुरिसे एवं वदासी - अहमंसि पुरिसे खेयने कुसले पंडिए वियत्ते मेहावी अबाले मग्गत्थे मग्गविऊ मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपुंडरीअं उन्निक्खिस्सामि त्ति कट्टु इति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे पुक्खरिणीं, जाव (१) B गंधरसफासमंते (२) अस्मिन् अध्ययने सर्वत्र 'पासादीअं' इत्यस्य स्थाने JAM प्रतीषु 'पासति तं ज्ञातव्यम् द्वि. श्र. स्कन्धे प्रथमाध्ययनम्

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