Book Title: Sutrakritang Sutra Dipika Dwitiya Vibhag
Author(s): Harshkulgani
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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श्री सूत्रकृताङ्गदीपिका
जाए पुरिसा मन्ने, अहमंसि पुरिसे खेयन्ने कुसले पंडिए वियत्ते मेहावी अबाले मग्गत्थे मग्गविऊ मग्गस्स गतिपरक्कमन्ने, अहमेयं पउमवरपुंडरीअं उन्निक्खिस्सामि इति वच्चा से पुरिसे अभक्कमे तं पुक्खरणिं, जाव जावं च णं अभिक्कमे ताव तावं च णं महंते उदए महंते सेए जव अंतरा सेयंसि विंसन्ने, तच्चे पुरिसज्जाए ॥८॥ पूर्ववत् सुगमम् ॥८॥
अहावरे चउत्थे पुरिसजाए, अह पुरिसे उत्तराओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरिणिं तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा पासादीअं महं एगं पउमवरपुंडरीअं अणुपुव्वट्ठिअं जाव पडिरूवं, ते तत्थ तिन्नि पुरिसजाए पासड़, पहीणे तीरं अपत्ते जाव सेयंसि विंसन्ने, तएणं से पुरिसे एवं वयासी, अहो मेर tarन्ना जाव नो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, जन्नं एते पुरिसा एवं मन्ने, अम्हे तं पउमवरपुंडरीअं उण्णिक्खिस्सामो, णो अ खलु एयं पउमवरपुंडरीअं एवं उन्निक्खेयव्वं जहा णं एते पुरिसा मन्ने, असि पुरिसे खेने जाव मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपुंडरीअं उण्णिक्खिस्सामि इति वच्चा से पुरिसे तं पुक्खरणिं जाव जावं च णं अभिक्कमे ताव तावं च णं महंते उद महं (१) M खलु एते (२) M जिसने AM निसणे (३) JAM णिसत्रे
द्वि. श्रु. स्कन्धे
प्रथमाध्ययनम्

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