Book Title: Sutrakritang Sutra Dipika Dwitiya Vibhag
Author(s): Harshkulgani
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 11
________________ श्री सूत्रकृताङ्गदीपिका तीरे ठिच्चा पासादीअं महं एगं पउमवरपुंडरीअं अणुपुव्वट्ठियं पासादीयं जाव पडिरूवं तं च एत्थ एगं पुरिसजायं पासड़ पहीणंतीरं अपत्तपउमवरपुंडरीअं णो हव्वाए णो पाराए अंतरा सेयंसि विसणे, तणं से पुरिसे ( तं पुरिसं) एवं वयासी, अहो णं इमे पुरिसे अखेयन्ने अकुशले पंडि अवियत्ते अमेहावी बाले णो मग्गत्थे णो मग्गविऊ णो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, जन्नं एस पुरिसे ( एवं मन्ने, अहं) खेयन्ने कुसले जाव पउमवरपुंडरीयं उन्निक्खिस्सामि, णो खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उन्निक्खेयव्वं जहा णं एस पुरिसे मन्ने, अहमंसि पुरिसे खेयन्ने कुसले पंडिए वियत्ते महावी अब मत्थे मग्गविऊ मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपुंडरीअं उन्नक्खिसाम बच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरिणीं, जाव जावं च णं अभिक्कमे ताव तावं च णं महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं अपत्तपउमवरपुंडरीअं णो हव्वाए णो पाराए अंतरा सेयंसि विसण्णे दुच्चे पुरिसजाए ||७|| (१) M पहीणे (२) JAM ० रा पोक्खरणीए से० द्वि.. प्रथमाध्ययनम्

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