Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
Publisher: 

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Page 278
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी | सोलहमो परिच्छेओ चरि // 135 // // 94 // रन्ना भणियं भद्दय ! को कोवो एत्थ वत्थुपरमत्थे / सत्थसमत्थियमज्झस्थतत्तबुद्धीहिं कहियम्मि ? // 95 / / कयउँवयारम्मि | गए सट्ठाणं अह निवेण वौहित्ता / भणिया सुहासणत्था पियंवया सोयतविएण / / 16 / / पढमसुयजम्मदियहे हरिसो किर होइ जणणिजणयाणं / तं पुण दिव्ववसेणं अम्हं अन्नारिसं जायं // 97 / / ता भदे ! तं गच्छसु बालं पित्तण धाविसंजुत्तं / नियसासुरए सिग्धं बुद्धिं तत्थेव नेयवो // 18 // तीए तहत्ति भणिउं नीओ सुरनंदणम्मि नयरम्मि। सिट्ठो तव्वुत्तंतो खयराहिवनिययदइयस्स // 19 // जलणप्पहखयराहिवपियभञाचित्तलेहतणयस्स / जलकंतस्स उ सबो तेणवि बहु मनिया एसा // 100 // युग्मम् / / ताहे जलकंतेणवि | जम्मणमहिमाइसयलकायवं / काऊण कयं नामं सुहदियहे मयणवेगोत्ति // 101 / / कमसो पवड्डमाणो पत्तो सो जोव्वणं मयणवेगो। अविणीओ दुस्सीलो अंकच्चनिरओ कॅयग्यो य // 102 // जलकंतखयरपुत्तो कंचणदेवीइ गम्भसंभूओ। जलवेगो से मित्तो जाओ | सहपढियरमिउत्ति / / 103 // | सुरसुंदरीइ कइयावि सीहसुमिणेण सूइओ तणओ। उप्पन्नो बीओवि य सुहतिहिनक्खत्तजोगम्मि // 104 // रूवेण अणंगसमो | सूरो चाई पिर्यवओ दक्खो। नामेणऽणंगकेऊ सुविणीओ जणणिजणयाण // 105 / / कमसो जोव्वणपत्तो जुबरायपयम्मि ठाविओ | एसो। साहियविजो वियरइ इच्छाए खयरनयरेसु / / 106 / / महुमासे संपत्ते राया अंतेउरेण संजुत्तो। अट्ठाहियमहिमट्ठा पत्तो वेयड| कूडम्मि // 107 // महया विच्छड्डेणं पत्ता वेयड्डवासिणो खयरा / गंधवनदृपउरा वट्टइ अट्ठाहिया जाव // 108 // ताव य गंगावत्ताउ आगया खयरनियरपरियरिया। वररूववई कन्ना अणंगवेगत्ति नामेण // 109 / / दिट्ठा सा जुवरना तीएवि सिणिद्धदिद्विपाएण / 1 'दैवज्ञे' इति शेषः / 2 व्याहृत्य आहूय। 3 अन्यादृशम् / 4 धावी-धात्री / 5 सासुर य=श्वशुरगृहम् / 6 अकृत्यनिरतः। 7 कृतघ्नः / // 135 // For Private and Personal Use Only

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