Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |पावगम्भस्स / मह मड्डाइ पओसो उप्पञ्जइ पावकम्माए // 79 / / ता गंतुं नरवइणो साहिजसु जेण अन्नहाभावं / न करेइ मज्झ उवरि वियलियनेहं ममं दट्टुं // 80 // अन्नं च भणसु दइयं दट्टब्बा नेव पावकम्मा हं। जाव न जाइ पसबो पावयगम्भस्स गम्भस्स // 8 // * गंतुं पियंवयाए सिद्ध सर्वपि मयरके उस्स / तं सोउं रायावि हु विम्हियचित्तो इमं भणइ / / 82 / / अवो! जा मह विरहं देवी निमि| संपि सोढुमसमत्था / सा गम्भस्स पभावा अदंसणं निठुरा महइ / / 83 // ता किं न होज सो चिय पुव्वविरुद्धो सुबंधुजीवोऽयं / भवियव्वयावसेण उववन्नो देवीकुच्छीए ? // 84 // एमाइ चिंतयंतो देवीए अदिनदसणो राया। नियवइरियसंकाए जावच्छइ देमिओ | चित्ते // 85 / / ताव य देवि दट्टुं असुहज्झवसायदारुणं रन्नो / मन्ने पियमित्ता इव साममुहा से थणा जाया // 86 // नरवरवरसुहसंगमसुहविरहुक्कंठियव देवीए / उज्झिय सामच्छायं गंडयलं पंडुरं जायं / / 87 // सव्वेहिवि गरुयत्तं पत्तं न मएत्ति लद्धपत्थावं / वित्थरियं से उदरं नरवइणो वेरिउग्गमणे / / 88 // दह्रणव उदरस्सवि गरुयत्तं जायतिव्वअभिमाणं / बड्डइ नियंबबि मा जिणिजत्ति | चिंताए / / 89 / / कमसो पसवणसमए संपत्ते संसहरम्मि मूलत्थे। पावग्गहावलोइयलग्गे लग्गाइ विट्ठीएँ / / 90 // सुरसुंदरी पस्या | महया किच्छेण दारयं ताहे / हित्थेहियएण रन्ना वाहरिओ पवरजोइसिओ॥९१।। पुट्ठो य कहसु तणयस्स गुणगणं एयरस समयजायस्स / धूणियसिरेण तेणवि भणियं नरनाह ! निमुणेसु // 92 / / एरिससमए जाओ जणयस्स न सुंदरो हवइ बालो। वहृतो पिउगेहे हणइ कुलं रायलच्छि च // 9 // देव ! न रूसेयत्वं जाव तुमं नेव पेच्छसे एयं / तावच्चिय तुह कुसलं पाणाणवि संसओ दिवे / / 1 बलात् / 2 प्रदोषः=प्रद्वेषः / 3 विगलित-विघटितम् / 4 पापगभस्य पापसहितस्य / 5 दूमिओदूनः / 6 सुहो-शुभः / 7 सुह-सुखम् / 8 विस्तृतम् / जिपिज्ज जाप्यै मा जितं भूवमहमित्यर्थः / 10 शशधरे / 11 विष्टिः भद्र।। 12 हित्थोत्रस्तः / For Private and Personal Use Only

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