Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 285
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *-* - -*-* अत्थं सुणेइ मूले गुरुणो सिरिचित्तवेगस्स // 202 // कालेण मयरकेऊ सुत्तत्थविसारओ महासत्तो। पंचविहंपि य तुलणं करेइ ए. गागिपडिमट्ठा / / 203 / / तवभावणाए भाविय अत्ताणं सत्तभावणम्भासं / कुणमाणो पेयवणे रत्तीए ठाइ उस्सग्गं // 204 // एत्थंतरम्मि सूरी विहरंतो पाविओ पुरि चंपं / पडिमाए मयरकेऊ पइदियहं ठाइ पेयवणे // 205|| चित्तगइवायगोवि य वायणसमयम्मि साहुमज्झगओ। विगहपमायासत्तो हरिओ केणावि देवेण // 206 / / अह मुणिणो विम्हइया गुरूण साहिति हरणवुत्तंत। उवउत्तो पुव्वगए नाउं तं वैइयरं सूरी॥२०७॥ आमंतिऊण समणे पवत्तिणि सयलसाहुणिसमेयं / वञ्जरइ गुरू अञ्जा! वजह वेरं सुदूरेण // 208 / / युग्मम् // जो सो मोहिलजीवो सुमंगलो परभवम्मि रुद्वेण / धणवइजीवसुरेण हयविजो माणुसनगस्स | // 209 / / परओ मुको तइया हिंडतो मणुयविरहिए रन्ने / डसिओ कुक्कुडसप्पेण सो मओ भमइ संसारे॥२१०॥ युग्मम् / / नारयतिरियनरेसुं दारुणदुक्खाई तत्थ अणुहविउं / सिद्धत्थपुरे जाओ सुरहो सो कणगवइपुत्तो॥२११॥ खयवाहीए मयम्मी सुग्गीवे नरवई इमो जाओ। तकम्मुदया रजं अहिट्ठियं सुप्पइटेणं // 212 // रजब्भट्ठो चंपाए आगओ कित्तिधम्मनरवइणा / देसंते गामसयं | दिन्नं से धूय तणयस्स // 213 // दुन्नयकारी भीमेण राइणा कित्तिधम्मतणएण / निव्वासिओ अडतो निबिनो तावसो जाओ॥२१॥ | काऊण य बालतवं जोइसवासी सणिच्छरो जाओ। सरिऊण पुव्बवइरं इहागओ चित्तगइपासे // 215 // छिद्द गवेसयंतो विगहपमत्तो | य वायगो अञ्ज / अवहरिउं पक्खित्तो सुरेण सो लवणजलहिम्मि / / 216 / / सुहपरिणामो भयवं सुक्कज्झाणेण दड्डकम्मंसो। संपइ भवभयमुक्को अंतगडो केवली जाओ // 217 // सोऊण सूरिवयणं समणा समणी य परमसंविग्गा / तावय पेयवणाओ समागओ अमरकेउमुणी॥२१८॥ भणइ य गुरुआणाए प्रेतवन-मशानम् / 2 ज्ञात्वा / 3 व्यतिकरम् / 4 क्षयव्याधिना / 5 दुहितृतनयस्य / 6 स्मृत्वा / *-* *- *-*-*- - For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292