Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
Publisher: 

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Page 283
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लहइ // 170 // एस मह रजलंभो हतयो जं पिया सहत्थेण / वेरियजणेण दिन्नं रजं नरयं विसेसेइ // 171 / / अह सो अद्दिस्सतणू | वंचिय सयलंपि रक्खणनरोहं / आगम्म गयपुरम्मी रनो छिदं पलोएड् // 172 / / बच्चोहरडिओ सो सरीरचिंतत्थमागयं पियरं / मणिरहियं पट्टीए पावो घाएइ छुरियाए // 173 / / दु8 अपिच्छमाणो य नरवई तक्खणेण निक्खंतो। पभणइ रुंभह दारं अद्दिस्सो, | अच्छए कोवि // 174 / / हण हण भणमाणेहिं कुंतग्गाहेहिं रुद्धदारम्मि / मरणभयाओ पडिओ वेट्ठयकूवे मयणवेगो॥१७५॥ पावं | चिंतेइ नरो वेरियलोयस्स कूरपरिणामो। नवरं निवडइ तस्सेव दुक्खयं इयरपुन्नेहिं // 176 / / रायावि अंगरक्खेहिं तक्खणं वेदिओ | परूढवणो। जाओ मणिसलिलेण सिंचंतो वेयणांरहिओ // 177 / / देसंताओ पत्ता भणनि परिरक्खगा नरा देव! / अहिस्सो होऊणं नवो सो मयणवेगो म्ह // 178 // अह राया संविग्गो चिंतइ तणयस्स विलसियं एयं / जाणतो किं अजवि निरुज्जमो धम्मकरणम्मि॥१७९॥ भोगासत्तो जिणधम्मवजिओ कहवि जइ मओ होतो / अट्टज्झाणोवगओ का मज्झ गई तओ होता? // 18 // | अह अनया कयाइवि विनत्तो सो निउत्तखयरेण / कुसुमायरम्मि सूरी समागओ चित्तवेगोत्ति // 181 / / पहसियवयणो राया दाऊणं पारिओसियं तस्स / अंतेउरेण सहिओ संपत्तो सूरिपासम्मि // 182 / / ति पयक्खिणिऊण मुणिं बंदइ विणओणमंतसिरकमलो। तह अमरकेउमाई बंदिय भत्तीइ उवविट्ठो॥१८३॥ संसारुव्वेयकरी रागद्दोसाइसत्तु निम्महणी / संवेगकरी विहिया वित्थरओ देसणा गुरुणा // 184 // तं सोउं संविग्गो पुच्छइ राया कहेहि मे भयवं!। किं वहइ वेरभावं मह पुत्तो मयणवेगोत्ति // 185 // कत्थ व चिट्ठइ संपइ, पभणइ सूरी सुणेहि नरनाह!। जो सो सुबंधुजीवो आसि सुरो कालबाणो ते // 186 / / काउं विजाच्छेयं सुरसुंदरिह 1 विष्टाकूपे / 2 कुसुमाकरे एतन्नाम्नि उद्याने / 3 पारितोषिकम् / For Private and Personal Use Only

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