Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
Publisher: 

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Page 287
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरंतरवन्नयसंजायसरीरसोहासु // 233 // आसत्तं सुवियवाण माणसं जइवि अणुदिणं नृणं / तहवि हु मह विन्नत्तिं सुणंतु इह सजणा सरला // 234 // चतसृभिः कलापकम् / / निरलंकाराच्छंदाणुवत्तिणी ललियकोमलसरीरा / दालिद्दियवरकुलबालियव्व एसा कहा तुम्ह // 235 / / उवणीया सुयणाणं अन्नासत्तावि वारयं दाउं / अवियड्डावि वियड्डा जह होइ तहा जैइजाह / / 236 / / युग्मम् / / ___आसि जिणो जयबंधू तित्थयरोवद्धमाणनामोत्ति / संसारजलहिमजंतजंतुजणजाणवत्तसमो // 237 // सीसो तस्स सुहम्मो तत्तो | जंबू तओ य पभवोत्ति / एवं सूरीण परंपराए ता जाव वइरोत्ति // 238 // साहाए तस्स सूरी जिणेसरो नाम आसि विक्खाओ। | तत्तो य निम्मलगुणो उज्झाओ अल्लओ नाम // 239 / / सीसो य तस्स सूरी सूरोव्व सयावि जणियंदोसंतो। आसि सिरिवद्धमाणो पवमाणो गुणसिरीए // 240 // रागो य जस्स धम्मे आसि पओसो य जस्स पावम्मि / तुल्लो य मित्तसत्तुसु तस्स य जाया दुवे सीसा // 241 // दुव्वारवाइवारणमरदृनिट्ठवणनिट्ठरमइंदो। जिणभणियसुद्धसिद्धंतदेसणाकरणतल्लिच्छो // 242 / / जस्स य अईवसुललियपयसंचारा पसन्नवाणीया। अइकोमला 'सिलेसे विविहालंकारसोहिल्ला // 24 // लीलावइत्तिनामा सुवन्नरयणोहहारिसयलंगा। वेसव्व कहा वियरइ जयम्मि कयजणमणाणंदा // 244 // युग्मम् / / एगो ताण जिणेसरसूरी सूरोव्व उक्कडपयावो / तस्स सिरिबुद्धिसागरसूरी य सहोयरो बीओ॥२४५।। पुनसरदिंदुसुंदरनियजसपब्भारभरियभुवणयलो। जिणभणियसत्थपरमत्थवित्थरासत्तसुहचित्तो 1 सुविदग्धानाम् / 2 अविदग्धापि। 3 यतध्वम् / 4 जगद्वन्धुः। 5 दोसो द्वेषः दोषा रात्रिश्च / 6 प्रद्वेषः / 7 दुरिचादिवारण(गज)गर्वनिष्ठापन Bell (विनाशन) निष्ठुरमृगेन्द्रः। 8 तल्लिच्छो तत्परः। 9 श्लेषे शब्दालङ्कारविशेषे, आलिझने च / 1. सुवन्नरयणा-शोभनवर्णरचना, स्वर्णरत्नानि च। 11 वेश्येव / 12 तयोः शिष्योर्मध्ये। For Private and Personal Use Only

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