Book Title: Sukta Ratna Manjusha Part 11 Vairagyashatakadi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Shramanopasak Parivar

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Page 9
________________ ઇન્દ્રિયપરાજયશતક २१ २६ ३३ ३४ ३९ ५५ ४१ ६८ ६९ ८९ तणकडेहि व अग्गी, लवणसमुझे नईसहस्सेहिं । न इमो जीवो सक्को, तिप्पेडं कामभोगेहिं ॥८०॥ जह कच्छुल्लो कच्छु, कंडुअमाणो दुहं मुणइ सुक्खं । मोहारा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं विति ॥ ८१ ॥ E न लहइ जहा लिहतो, मुहल्लियं अट्ठिअं जहा सुणओ । सोसइ तालुअरसिअं, विलिहंतो मन्नए सुक्खं ॥ ८२ ॥ महिलाण कायसेवी, न लहइ किंचि वि सुहं तहा पुरिसो । सो मन्त्रए वराओ, सयकायपरिस्समं सुक्खं ॥८३॥ परिहरसु तओ तासिं, दिट्ठि दिडिविसस्स व्व अहिस्स । जं रमणिनवणवाणा, चरित्तपाणे विणासंति ॥८४॥ हरिहरचउराणण-चंदसूरखंदाइणो वि जे देवा । नारीण किंकरतं, कुणति धिन्द्धी विसयति ॥८५॥ मयणनवणीयविलओ, जह जायइ जलणसंनिहाणंमि । तह रमणिसंनिहाणे, विश्वइ मणो मुणीणं पि ॥८६॥ जउनंदणो महप्पा, जिणभाया वयधरो चरमदेहो । रहनेमि राईमई, रायमई कासि ही ! विसया ॥८७॥ मयणपवणेण जड़, तारिसा वि सुरसेलनिच्चला चलिया । ता पक्कपत्तसत्ताण, इअरसत्ताण का वत्ता ? ॥८८॥ ही संसारे विहिणा, महिलारूवेण मंडिअं जालं । बज्झति जत्थ मूडा, मणुआ तिरिआ सुरा असुरा ॥८९॥

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