Book Title: Sukta Ratna Manjusha Part 11 Vairagyashatakadi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Shramanopasak Parivar

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Page 8
________________ વૈરાગ્યશતકાદિ સૂક્ત - રત્ન - મંજૂષા ३२ इंदियविसयपसत्ता, पडंति संसारसायरे जीवा । पक्खि व्व छिन्नपक्खा, सुसीलगुणपेहुणविहुणा ॥७०॥ सच्चं सुअं पि सील, विन्नाणं तह तवं पि वेरग्गं । वच्चइ खणेण सव्वं, विसयविसेणं जईणं पि ॥७१॥ जो रागाईण वसे, वसंमि सो सयलदुक्खलक्खाणं । जस्स वसे रागाई, तस्स वसे सयलसुक्खाई ॥७२॥ दहइ गोसीससिरिखंड छारक्कए, छगलगहणट्ठमेरावणं विक्कए । कप्पतरु तोडि एरंड सो वावए, जुज्जि विसएहिं मणुअत्तणं हारए ॥७३॥ जह विठ्ठपुंजखुत्तो, किमी सुहं मन्नए सयाकालं । तह विसयासुइरत्तो, जीवो वि मुणइ सुहं मूढो ॥७४॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो, दटुं थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं जीआ कामगुणेसु गिद्धा, सुधम्ममग्गे न रया हवंति ॥५॥ सुट्ठ वि मग्गिज्जंतो, कत्थ वि कयलीइ नत्थि जह सारो । इंदियविसएसु तहा, नत्थि सुहं सुट्ठ वि गविट्ठ ॥७६॥ पत्ता य कामभोगा, सुरेसु असुरेसु तह य मणुएसु। न य जीव ! तुज्झ तित्ती, जलणस्स व कट्ठनियरेण ॥७७॥ १६ देविंदचक्कवट्टित्तणाई, रज्जाई उत्तमा भोगा । पत्ता अणंतखुत्तो, न य हं तत्तिं गओ तेहिं ॥७८॥ संसारचक्कवाले, सव्वे वि य पुग्गला मए बहुसो। आहारिआ य परिणामिया य, न य तेसु तित्तो हं ॥७९॥

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