Book Title: Sukta Ratna Manjusha Part 11 Vairagyashatakadi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Shramanopasak Parivar
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ગૌતમકુલક
૧૫
अरोइअत्थे कहिए विलावो, असंपहारे कहिए विलावो । विक्खित्तचित्ते कहिए विलावो, बहु कुसीसे कहिए विलावो ॥३१॥ दुवा निवा दंडपरा हवंति, विज्जाहरा मंतपरा हवंति । मुक्खा नरा कोवपरा हवंति, सुसाहुणो तत्तपरा हवंति ॥३२॥ सोहा भवे उग्गतवस्स खंती, समाहिजोगो पसमस्स सोहा । नाणं सुझाणं चरणस्स सोहा, सीसस्स सोहा विणए पवित्ती ॥३३॥ अभूसणो सोहइ बंभयारी, अकिंचणो सोहइ दिक्खधारी । बुद्धिजुओ सोहइ रायमंती, लज्जाजुओ सोहइ एगपत्ती ॥३४॥ अप्पा अरी होइ अणवट्ठिअस्स, अप्पा जसो सीलमओ नरस्स । अप्पा दुरप्या अणवट्ठियस्स, अप्पा जिअप्पा सरणं गई य ॥३५॥ न धम्मकज्जा परमत्थि कज्जं, न पाणिहिंसा परमं अकज्ज ।
न पेमरागा परमत्थि बंधो, न बोहिलाभा परमत्थि लाभो ॥३६॥ १३ न सेवियव्वा पमया परक्का, न सेवियव्वा पुरिसा अविज्जा।
न सेवियव्वा अहिमानि हीणा, न सेवियव्वा पिसुणा मणुस्सा ॥३७॥ १४ जे धम्मिया ते खलु सेवियव्वा, जे पंडिया ते खलु पुच्छियव्वा ।
जे साहुणो ते अभिवंदियव्वा, जे निम्ममा ते पडिलाभियव्वा ॥३८॥ पुत्ता य सीसा य समं विभत्ता, रिसी य देवा य समं विभत्ता । मुक्खा तिरिक्खा य समं विभत्ता, मुआ दरिद्दा य समं विभत्ता ॥३९॥ सव्वा कला धम्मकला जिणाइ, सव्वा कहा धम्मकहा जिणाइ ।
सव्वं बलं धम्मबलं जिणाइ, सव्वं सुहं धम्मसुहं जिणाइ ॥४०॥ १७ जूए पसत्तस्स धणस्स नासो, मंसे पसत्तस्स दयाइ नासो ।
मज्जे पसत्तस्स जसस्स नासो, वेसापसत्तस्स कुलस्स नासो ॥४१॥

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