Book Title: Sukta Ratna Manjusha Part 11 Vairagyashatakadi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Shramanopasak Parivar
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કુલક સૂક્ત - રત્ન - મંજૂષા - ૧
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भुंजइ भुंजाविज्जइ, पुच्छिज्ज मणोगयं कहिज्ज सयं । दिज्जइलिज्जिइ उचिअ इच्छिज्जइ जड़ थिरपिम्मं ॥२१॥ को वि न अवमन्निज्जइ, न य गव्विज्जइ गुणेहिं निअएहिं । न विम्हिओ वहिज्जड़, बहुरयणा जेणिमा पुहवी ॥२२॥ आरंभिज्जइ लहुअं, किज्जइ कज्जं महंतमवि पच्छा । न य उक्करिसो किज्जह, लब्भड़ गुरुअत्तणं जेण ॥ २३ ॥ साहिज्जड़ परमप्पा, अप्यसमाणो गणिज्जह परो वि किज्जइ न रागदोसो, छिनिज्जड़ तेण संसारो ॥२४॥ गौतमर्षिकृतं गौतमकुलकम्
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लुद्धा नरा अत्थपरा हवंति मूढा नरा कामपरा हवंति । बुद्धा नरा खंतिपरा हवंति, मिस्सा नरा तिनि वि आवरंति ॥२५॥
ते पंडिया जे विरया विरोहे, ते साहुणो जे समयं चरंति । ते सत्तिणो जे न खलति धम्मे, ते बंधवा जे बसणे हवंति ।।२६।। कोहाभिभूया न सुहं लहंति, माणंसिणो सोयपरा हवंति । मायाविणो हुति परस्स पेसा, लुद्धा महिच्छा नरयं उविंति ॥२७॥ कोहो विसं किं अमयं अहिंसा, माणो अरी कि हियमप्यमाओ । माया भयं किं सरणं तु सच्चं, लोहो दुहं किं सुहमाह तुट्ठि ॥२८॥ बुद्धी अचंडं भयए विणीयं कुद्धं कुसीलं भयए अकित्ती । संभिन्नचित्तं भयए अलच्छी, सच्चे ट्ठियं संभयए सिरी य ॥२९॥ चयंति मित्ताणि नरं कवग्धं चयंति पावाई मुणि जयंतं । चयंति सुक्काणि सराणि हंसा, चयंति बुद्धी कुवियं मणुस्सं ॥३०॥
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