Book Title: Sukta Ratna Manjusha Part 11 Vairagyashatakadi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Shramanopasak Parivar

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Page 12
________________ ૧૨ ३ ४ ६ ७ ८ ९ डुस सूत रत्न मंभूषा १ डुसङसंग्रह सूक्त रत्न मंभूषा १ - पद्मजिनेन्द्रसूरिकृतं उपदेशरत्नमालाकुलकम् उवएसरयणकोर्स, नासिअनीसेसलोग दोगच्चं । उवएसरयणमाल, वुच्छं नमिऊण वीरजिणं ॥ १ ॥ जीवदवाई रमिज्जड़, इंदियवग्गो दमिज्जड़ सवा वि। सच्चं चेव वइज्जइ, धम्मस्स रहस्समिणमेव ॥२॥ सीलं न हु खंडिज्जइ, न संवसिज्जइ समं कुसीलेहिं । गुरुवयणं न खलिज्जड़, जड़ नज्जड़ धम्मपरमत्थो ॥३॥ चवलं न चकमिज्ज, विरज्जड नेव उभो येसो । वकं न पलोइज्ज, रुह वि कुणंति किं पिसुणा ? ॥४॥ नियमिज्ज निवजीहा, अविआरियं नेव किज्जए कज्जं । नकुलकम्मो अ लुप्पड़, कुविओ किं कुणइ कलिकालो ? ॥५॥ मम्मं न उल्लविज्जइ, कस्स वि आलं न दिज्जइ कया वि । को वि न अक्कोसिज्जइ, सज्जणमग्गो इमो दुग्गो ॥६॥ सव्वस्स उवयरिज्जइ, न पम्हसिज्जइ परस्स उवयारो । विहलं अवलंचिज्जइ, उवएसो एस विउसार्ण ॥७॥ को वि न अभत्थिज्जड़, किज्जड़ करस वि न पत्क्षणाभंगो । दीणं न य जंपिज्जइ, जीवीज्जइ जाव इहलोए ॥८ ॥ अप्पा न पसंसिज्जइ, निंदिज्जइ दुज्जणो वि न कया वि । बहु बहुसो न हसिज्जड़, लब्भड़ गुरुअत्तणं तेण ॥ ९ ॥

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