Book Title: Sukta Ratna Manjusha Part 11 Vairagyashatakadi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Shramanopasak Parivar

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Page 7
________________ ઇન્દ્રિયપરાજયશતક ४७ जं लहइ वीअराओ, सुक्खं तं मुणइ सुच्चिय न अन्नो । न हि गत्तासूअरओ, जाणइ सुरलोइअं सुक्खं ॥६०॥ ४५ सव्वग्गंथविमुक्को, सीईभूओ पसंतचित्तो अ । जं पावइ मुत्तिसुहं, न चक्कवट्टी वि तं लहइ ॥६१॥ तिलमित्तं विसयसुहं, दुहं च गिरिरायसिंगतुंगयरं । भवकोडीहिं न निट्ठइ, जं जाणसु तं करिज्जासु ॥६२॥ अथिराण चंचलाण य, खणमित्तसुहंकराण पावाणं । दुग्गइनिबंधणाणं, विरमसु एआण भोगाणं ॥६३॥ जहा य किंपागफला मणोरमा, रसेण वन्नेण य भुंजमाणा। ते खुट्टए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥४॥ खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अनिकामसुक्खा । संसारमुक्खस्स विपक्खभूआ, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥६५॥ पज्जलिओ विसयअग्गी, चरित्तसारं डहिज्ज कसिणं पि । सम्मत्तं पि विराहिअ, अणंतसंसारिअं कुज्जा ॥६६॥ भीसणभवकंतारे, विसमा जीवाण विसयतिण्हाओ। जीए नडिआ चउदस-पुव्वी वि रुलंति हु निगोए ॥६७॥ सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । कामे अ पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गइं ॥६८॥ ३० विसयाविक्खो निवडइ, निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं । देवी-दीवसमागय-भाउअजुअलेण दिलुतो ॥६९॥

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