Book Title: Subhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Author(s): Charanvijay
Publisher: Chimanlal Nathalal Gandhi
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________________ : विविधविषयविचारणासूक्तानि शैत्यं नाम गुणस्तवैव भवतः स्वाभाविकी स्वस्छता, कि ब्रुमः शुचितां व्रजन्त्यशुचयः सङ्गेन यस्यापरे / किं चातः परमस्ति ते स्तुतिपदं, त्वं जीवितं देहिनां, ... त्वं चेन्नीचपथेन गच्छसि पयः ! कस्त्वां निरोद्ध क्षमः // 101 // निष्कारण प्रीति क्यांकज होय प्रीतिर्जन्मनि वासतोप्युपकृतेः सम्बन्धतो लिप्सया, विन्ध्ये हस्तिवदम्बुजे मधुपवच्चन्द्रे पयोराशिवत् / अब्दे चातकवदसुमतां सर्वत्र नैमित्तिकी, या निष्कारणबन्धुरा शिखिवदम्भोदे कचित् सा पुनः॥१०२॥ . दामनकनु नसीब कथमस्य महापुंसः, कामस्येव वपुःश्रिया। प्रदीयते विषं घोरं, दीयते हि विषा खलु // 103 // ___अमृतना कुंडोनुं स्थान . पाताले नवामृतकुण्डानि सन्ति नागकुलैरधिष्ठितानि इति श्रुतिः। वापीकूपसरोलौः, सुधासोदरवारिभिः / नागलोकं नवसुधा,-कुण्डं परिबभूव सा // 104 // * ब्रह्मानां पांच दुश्चरित भिक्षुर्विलासी निर्धनश्च कामी, वृद्धो विटः प्रबजितश्च मूर्खः / पण्याङ्गना रुपविलासहीना, प्रजापतेर्दुचरितानि पञ्च // 105 //

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