Book Title: Subhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Author(s): Charanvijay
Publisher: Chimanlal Nathalal Gandhi
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________________ जुदा जुदा विषयमा मलेलां काव्यो 501 ततो जीर्णजिनागारो, द्वारे रैकोटिरेकिका। . व्ययिता भूभुजा सङ्घ-युक्तेन गुरुवाक्यतः // 18 // आरोग्य माटे तिन्नि सल्ला महाराय ? अस्सि देहे पइट्ठिया। वाउ-मुत्त-पुरीसाणं, खणमित्त न धारए // 19 // कामांधो कृत्याकृत्ये न जानन्ति, न जानन्ति हिताहिते। .... कामान्धा मानवा जडा-धत्तुरबीजका इव // 20 // गुणी आत्माओ विरला जाणंति गुणा, विरला पिच्छन्ति अत्तणो दोसे / विरला परकज्जकरा-परदुक्खे दुविखआ विरला // 21 // वीतरागशासन आराधक जीवोने एकरण उत्तम वस्तु . .. अलभ्य नथी तन्नास्ति जगति मध्ये, वस्तु कल्पद्रुमादिकं / जिनधर्मकसक्ताना, जीवानां यन्न सिध्यति // 22 // ___ मांस भक्षणनी अधमता वराका वंचिता नूनं, परलोक सुखेन ते / जन्मापि निष्फलं तेषां, येषां मासाशने मतिः // 23 // अशाश्वतस्य तुच्छस्य, शरीरस्यास्य हेतवे / मारयंतीह ये जीवान् , किं ते जगति शाश्वताः॥२४ __ द्यूतनी दुष्टता द्यूतं सर्वापदां धाम, द्यूतं दीव्यन्ति दुर्षियः / द्यूतेन कुलमालिन्यं, द्यूताय श्लाघतेऽधमः॥२५॥

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