Book Title: Stotrasamucchaya
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Pandurang Javji

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Page 241
________________ २२९ प्रथमस्वरनिबद्धं साधारणजिनस्तवनम् । जय जय जयजणवच्छल ! नवजलहरपवणवणयसमणयण!। नयणमणपमयवद्धण! धणकणयलक्खणयसमण! ॥ १ ॥ समणमणभसलजलसय! सयत्थसत्थत्थपयडणसमत्थ! । मत्थयनमंतनरवर ! वरवरयवरंग गयसंग! ॥ २॥ संगरगररससयगय ! गयमच्छर! रयणमयणदढजलण! । जलणजलसप्पभयहर! हरहसधवलयरजसपसर! ॥ ३ ॥ सरणपवनसरन्नय नयसयगमरम्मसम्ममयसमय !। मयमयगलनहपहरण! रणरणयभयब्भमसवत्त ! ॥४॥ वत्तसयवत्तगहवर! वरकलसलसंतसंखचक्कंक! । कंकफलसरलनयण! नयपमयअसत्तअपमत्त ! ॥ ५ ॥ मत्तगयगमण ! गयमण मणगयसंसयसहस्सतमतवण! । तवणप्पहपहयर ! हयतमपरमपयनयरस्स ॥ ६ ॥ इय पढमसरनिबद्धं घणक्खरं गहिय मुक्कयपयडूं। भत्तीए संथवर्ण रइयं मुणिचंदमुणिवइणा ॥ ७ ॥ इति साधारणजिनस्तवनम् । प्रथमस्वरमयं प्रथमजिनस्तवनम् । सकलकमलदलकरपदनयन! प्रहतमदनमद ! भवभयहरण! । सततममरनरनतपदकमल! जय जय गतमद ! मदकलगमन !॥१॥ अमलकनकनगवर! गतरमण! क्षतजननमरण! शमरससदन। श्रमणकमलवनतपन ! गतभव! भवभयमपहर मम जनमहन! ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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