Book Title: Sthanang Sutra Part 02
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 12
________________ श्री स्थानाङ्ग सूत्र प्रस्तावना स्थानाङ्गसूत्र प्रस्तावना आचार्य देवेन्द्रमुनि शास्त्री एक समीक्षात्मक अध्ययन भारतीय धर्म, दर्शन, साहित्यं और संस्कृति रूपी भव्य भवन के वेद, त्रिपिटक और आगम ये तीन मूल आधार स्तम्भ हैं, जिन पर भारतीय चिन्तन आधृत है। भारतीय धर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति की अन्तरात्मा को समझने के लिए इन तीनों का परिज्ञान आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। वेद X वेद भारतीय तत्त्वद्रष्टा ऋषियों की वाणी का अपूर्व व अनूठा संग्रह है। समय-समय पर प्राकृतिक सौन्दर्य - सुषमा को निहारकर या अद्भुत, अलौकिक रहस्यों को देखकर जिज्ञासु ऋषियों की हत्तन्त्री के सुकुमार तार झनझना उठे और वह अन्तर्हृदय की वाणी वेद के रूप में विश्रुत हुई । ब्राह्मण दार्शनिक मीमांसक वेदों को सनातन और अपौरुषेय मानते हैं। नैयायिक और वैशेषिक प्रभृति दार्शनिक उसे ईश्वरप्रणीत मानते हैं। उनका यह आघोष है कि वेद ईश्वर की वाणी हैं। किन्तु आधुनिक इतिहासकार वेदों की रचना का समय अन्तिम रूप से निश्चित नहीं कर सके हैं। विभिन्न विज्ञों के विविध मत हैं, पर यह निश्चित है कि वेद भारत की प्राचीन साहित्यसम्पदा है। प्रारम्भ में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद ये तीन ही वेद थे। अतः उन्हें वेदत्रयी कहा गया है। उसके पश्चात् अथर्ववेद को मिलाकर चार वेद बन गये । ब्राह्मण ग्रन्थ व आरण्यक ग्रन्थों में वेद की विशेष व्याख्या की गयी है। उस व्याख्या में कर्मकाण्ड की प्रमुखता है । उपनिषद् वेदों का अन्तिम भाग होने से वह वेदान्त कहलाता है । उसमें ज्ञानकाण्ड की प्रधानता है। वेदों को प्रमाणभूत मानकर ही स्मृतिशास्त्र और सूत्र - साहित्य का निर्माण किया गया। ब्राह्मण परम्परा का जितना भी साहित्य निर्मित हुआ है, उस का मूल स्रोत वेद है। भाषा की दृष्टि से वैदिक - विज्ञों ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम संस्कृत को बनाया है और उस भाषा को अधिक से अधिक समृद्ध करने का प्रयास किया है। त्रिपिटक त्रिपिटक तथागत बुद्ध के प्रवचनों का सुव्यवस्थित संकलन - आकलन है, जिस में आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक और नैतिक उपदेश भरे पड़े हैं। बौद्ध परम्परा का सम्पूर्ण आचार-विचार और विश्वास का केन्द्र त्रिपिटक साहित्य है। पिटक तीन हैं- सुत्तपिटक, विनयपिटक, अभिधम्मपिटक । सुत्तपिटक में बौद्धसिद्धान्तों का विश्लेषण है, विनयपिटक में भिक्षुओं की परिचर्या और अनुशासन सम्बन्धी चिन्तन है और अभिधम्मपिटक में तत्त्वों का दार्शनिक-विवेचन है । आधुनिक इतिहासवेत्ताओं ने त्रिपिटक का रचनाकाल भी निर्धारित किया है। बौद्धसाहित्य अत्यधिक विशाल है। उस साहित्य ने भारत को ही नहीं, अपितु चीन, जापान, लंका, वर्मा, कम्बोडिया, थाईदेश आदि अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज को भी प्रभावित किया है। वैदिक-विज्ञों ने वेदों की भाषा संस्कृत अपनाई तो बुद्ध ने उस युग की जनभाषा पाली अपनाई । पाली भाषा अपनाने से बुद्ध जनसाधारण के अत्यधिक लोकप्रिय हुए।

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