Book Title: Sramana 1999 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 6
________________ जायेगा। विशेष रूप से जैन अध्ययन परम्परा के कतिपय विलुप्त अध्याय प्रकाश में आ सकेंगे। जुलाई १९९९ में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक पद का कार्यभार सम्हालते ही मुझे यह स्मरण दिलाया गया कि विद्यापीठ की शिक्षा परिषद् ने काफी पहले यह प्रस्ताव पारित किया था कि श्रमण का एक अंक श्री पं० अमृतलाल शास्त्री के अभिनन्दन के रूप में प्रकाशित किया जाये । तदनुसार प्रस्तुत अंक उन्हें समर्पित है। पं० जी की अगाध विद्वत्ता, सरलता और मधुरता उनके शरीर को निरामय बनाये रखे और वे शतायु हों। इसी शुभकामना के साथ हमारा समूचा पार्श्वनाथ विद्यापीठ संस्थान उनका हार्दिक अभिनन्दन करता है। संस्थान की त्रैमासिक गतिविधियों के सन्दर्भ में आपको 'विद्यापीठ परिसर' वाले प्रपत्र से जानकारी मिल जायेगी जो इसी अंक में प्रकाशित है। हमारा प्रयत्न है कि संस्थान अपनी शैक्षणिक दिशा में उत्तरोत्तर बढ़ता रहे और समाज को भी अपने साथ जोड़ता रहे। समाज से भी निवेदन है कि वह संस्थान के हर विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देता रहे। उसके योगदान में ही संस्थान की प्रगति है। छात्रावास, छात्रवृत्तियाँ, प्रकाशन, श्रमण की सदस्यता आदि अनेक सन्दर्भ हैं जहाँ समाज अपना आर्थिक सहयोग दे सकता है और अपने परिवार की स्मृति बनाये रख सकता है। एतदर्थ इच्छुक व्यक्ति संस्थान से सम्पर्क कर सकते हैं। नयी शताब्दी में वह अपनी पहचान और भी तेज कर सके इसके लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है। Jain Education International प्रोफेसर भागचन्द्र जैन 'भास्कर' प्रधान सम्पादक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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