Book Title: Sramana 1999 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 4
________________ ध्यान देना चाहिए साथ ही साधु समाज का भी कर्तव्य है कि वह अपने आप को साधना तक ही सीमित रखे। संसारिकता के पचड़े में न पड़कर आत्मकल्याण पर ही अधिक जोर दे। __ कुछ समय पहले समाचार पत्रों में यह समाचार प्रकाशित हुआ कि एक दिगम्बर मुनि शिविका में बैठकर भट्टारक बनने के लिए निकल पड़े। दोनों दो पृथक् पृथक् दिशायें हैं। मुनि भट्टारक के साथ जुड़ जायें तो वह एक अभिनव दिशा ही होगी। मठाधीशत्व को सामने रखकर कुछ परिवर्तन के साथ भट्टारक प्रथा का प्रारम्भ हुआ था। समय की वह मांग थी। आज भी है। जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में भट्टारकों का विशिष्ट योगदान रहा है। पर मुनि परम्परा का उससे जुड़ना उचित नहीं कहा जा सकता है। विभिन्न माध्यमों से यह सूचना मिली है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा ली जाने वाली नेट परीक्षा से प्राकृत भाषा की एक स्वतन्त्र विषय के रूप में मान्यता समाप्त कर दी गई है और उसे अन्य विषयों के साथ संलग्न कर दिया गया है जिससे इस विषय का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों का भविष्य ( अन्धकार में पड़ गया है। आयोग का यह निर्णय अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। आयोग के अध्यक्ष प्रो० हरिगौतम से हम सभी प्राकृत प्रेमियों का अनुरोध है कि प्राकृत भाषा के नेट परीक्षा के अन्तर्गत एक स्वतन्त्र विषय के रूप में पूर्ववत् मान्यता प्रदान करने की कृपा करें। बीसवीं शताब्दी जैनधर्म के लिए कल्याणपरक रही है। जैन साहित्य और संस्कृति ने भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में जो अनुपम योगदान दिया है उसका लेखा-जोखा इसी शताब्दी में अधिक हुआ है। अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का उपक्रम भी इसी शताब्दी की देन है। १८-१९वीं शताब्दी में हमारी गतिमत्ता में कुछ कमी आयी थी। यह हमारे जैन समाज के ही साथ नहीं था, बल्कि समग्र भारतीय समाज उस युगीन परिस्थितियों से प्रभावित रहा है। बाद में २०वीं शती में संस्कृत अध्यापन परम्परा का विकास हुआ। जैन समाज में भी सर्वश्री गणेश प्रसाद वर्णी और विजयधर्मसूरि जैसे महात्माओं ने विभिन्न संस्कृत विद्यालयों की स्थापन की और उनसे प्रज्ञाचक्ष पं० सुखलाल संघवी, दलसुख मालवणिया, बेचरदास दोशी, डॉ० हीरालाल जैन, आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, पं० फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री, पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, डॉ० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पं० बालचन्द्र शास्त्री, पं० दरबारी लाल P कोठिया जैसे प्राचीन परम्परागत शास्त्रों में निष्णात विद्वान् निकले। इन विद्वानों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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