Book Title: Sramana 1999 10 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 8
________________ जैन अलङ्कार साहित्य जैन साहित्य में भगवान् महावीर के समय से ही अलंकारों का प्रयोग होता चला आ रहा है। 'णिद्दोसं सारमंतं च हेउजुत्तमलंकियं' इत्यादि अनुयोगद्वार सूत्र के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि प्राचीन युग के जैन आचार्य अलंकारशास्त्र की परिभाषाओं से परिचित थे। विक्रम की दूसरी-तीसरी शताब्दी में जैन आचार्य श्री समन्तभद्र ने अपनी कृति 'स्तुतिविद्या' में- जिसका अपर नाम 'जिनशतकम्' है-- आदि से अन्त तक 'चित्र' अलंकार का उपयोग किया है। ___ जैन साहित्य बहुत विशाल है। अभी तक इसका पूरा प्रकाशन नहीं हो सका तो यदि परा जैन साहित्य प्रकाशित हो जावे तो वह भारतीय साहित्य के आधे भाग के बराबर होगा। जैन साहित्य की भाषा अलंकारों से अलंकृत है, अत: उसके मर्म को समझने के लिये अलंकारशास्त्रों का परिज्ञान नितान्त आवश्यक है। इसी की पूर्ति के लिये अनेक जैन आचार्यों ने महत्त्वपूर्ण अलंकार ग्रन्थों की रचना की। प्रथमत: जैन विद्वानों ने अलंकार ग्रन्थों की रचना प्राकृतभाषा में की। जैसलमेर-भण्डार की ग्रन्थ-सूची से पता चलता है कि किसी जैन विद्वान् ने प्राकृत भाषा में 'अलंकार दर्पण' (सं० ११६१) नामक ग्रन्थ रचा था, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ। अभी तक जितने जैन अलंकार ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं, उनमें निम्नलिखित ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं- वाग्भटालंकार (१२वीं शती), काव्यानुशासन-हेमचन्द्र (१२वीं शती), काव्यकल्पलतावृत्ति (१३वीं शती), अलंकारमहोदधि (१३वीं शती), नाट्यदर्पण (१३वीं शती), अलंकारचिन्तामणि (१४वीं शती), काव्यानुशासन-वाग्भट (१४वीं शती) और काव्यालंकारसार (१५वीं शती)। ___ वाग्भटालंकार- वाग्भटालंकार के प्रणेता श्री वाग्भट्ट हैं। इनके पिता का नाम 'सोम' था और ये अणहिल्लपाटन (गुजरात) के राजा श्री जयसिंह- जो राजा कर्णदेव के पुत्र थे— के मन्त्री थे। इसका उल्लेख सिंहदेवगणि ने ‘बंभंड' इत्यादि चतुर्थ परिच्छेद के १४८वें श्लोक की व्याख्या करते हुए वाग्भटालंकार टीका में किया है। प्रभाचन्द्र *. आचार्यभिक्षुस्मृति ग्रन्थ से साभार। *. यह ग्रन्थ पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित हो रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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