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स्त्रीमुक्ति, अन्यतैर्थिकमुक्ति एवं सवस्त्रमुक्ति का प्रश्न
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क्या होता है, पशु भी सम्यग्दृष्टि हो सकता है, किन्तु वह तो मोक्ष का अधिकारी नहीं होता है। इस पर यापनीयों का प्रत्युत्तर यह है कि स्त्री पशु नहीं, मनुष्य है। पुन: यह आपत्ति उठाई जा सकती है कि सभी मनुष्य भी तो सिद्ध नहीं होते, जैसे अनार्यक्षेत्र में या भोगभूमि में उत्पन्न मनुष्य। इसका प्रत्युत्तर यह है कि स्त्रियाँ आर्य देश में भी तो उत्पन्न होती हैं। यदि यह कहा जाय कि आर्य देश में उत्पत्र होकर भी असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले अर्थात् योगलिक मुक्ति के योग्य नहीं होते, तो इसका प्रत्युत्तर यह है कि सभी स्त्रियाँ असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाली भी नहीं होतीं। पुन: यदि यह तर्क दिया जाय कि संख्यात वर्ष की आयु वाले होकर भी जो अतिक्रूरमति हों, वे भी मुक्ति के पात्र नहीं होते तो इसका उत्तर यह है कि सभी स्त्रियाँ अतिक्रूरमति भी नहीं होती क्योंकि स्त्रियों में तो सप्तम नरक की आयुष्य बाँधने योग्य तीव्र-रौद्र ध्यान का अभाव होता है। यह उसमें अति क्रूरता के अभाव का तथा उसके करुणामय स्वभाव का प्रमाण है और इसलिये उसमें मुक्ति के योग्य प्रकृष्ट शुभभाव का अभाव नहीं माना जा सकता। पुन: यदि यह कहा जाय कि स्वभाव से करुणामय होकर भी जो मोह को उपशान्त करने में समर्थ नहीं होता, वह भी मुक्ति का अधिकारी नहीं होता तो ऐसा भी नहीं है, क्योंकि कुछ स्त्रियाँ मोह का उपशमन करती हुई देखी जाती हैं। यदि यह कहा जाय कि मोह का उपशमन करने पर भी यदि कोई व्यक्ति अशुद्धाचारी है, तो वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता तो इसके निराकरण के लिये कहा गया है कि सभी स्त्रियाँ अशुद्धाचारी ( दुराचारी ) नहीं होती। इस पर यदि कोई तर्क करे कि शुद्ध आचार वाली होकर भी स्त्रियाँ शुद्ध शरीर वाली नहीं होती, इसलिये वे मोक्ष की अधिकारी नहीं हैं, तो इसके प्रत्युत्तर में यह कहा गया है कि सभी स्त्रियाँ तो अशुद्ध शरीर वाली नहीं होती। पूर्व कर्मों के कारण कुछ स्त्रियों की कुक्षि, स्तनप्रदेश आदि अशुचि से रहित भी होते हैं। यह तर्क कुन्दकुन्द की अवधारणा का स्पष्ट प्रत्युत्तर है। पुनः शुद्ध शरीर वाली होकर भी यदि स्त्री परलोक हितकारी प्रवृत्ति से रहित हो तो मोक्ष की अधिकारी नहीं हो सकती, परन्तु ऐसा भी नहीं देखा जाता। कुछ स्त्रियाँ परलोक सुधारने के लिये प्रयत्नशील भी देखी जाती हैं। यदि यह कहा जाय कि परलोक हितार्थ प्रवृत्ति करने वाली स्त्री भी यदि अपूर्वकरण आदि से रहित हो, तो मुक्ति के योग्य नहीं है। किन्तु शास्त्र में स्त्री भाव के साथ अपूर्वकरण का भी कोई विरोध नहीं दिखलाया गया है। इसके विपरीत शास्त्र में स्त्री में भी अपूर्वकरण का सद्भाव प्रतिपादित है। पुन: यदि यह कहा जाय कि अपूर्वकरण से युक्त होकर भी यदि कोई स्त्री नवम गुणस्थान को प्राप्त करने में अयोग्य हो तो वह मुक्ति की अधिकारी नहीं हो सकती। किन्तु आगम में स्त्री में
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