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जैन जगत् :
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मोतीलाल बनारसीदास संस्थान भारतीय संस्कृति एवम् आध्यात्मिक विकास के प्रकाशक के रूप में भारत ही नहीं अपितु विश्व के कोने-कोने में प्रसिद्ध है। इस संस्थान के माध्यम से इन्होंने प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा साहित्य की अभूतपूर्व सेवा की। इसके २००० प्रकाशनों में उल्लेखनीय हैं : इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इण्डियन फिलासफी (१५ भाग), एशियन्ट इण्डियन ट्रेडीशन एण्ड माइथोलाजी (पुराणों का अनुवाद) (१०० भाग) और दी सैक्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट (५० भाग)।
कुछ ही वर्ष पूर्व इन्होंने रामचरितमानस का अन्तर्राष्ट्रीय संस्करण प्रकाशित कर सारे विश्व में इसका प्रचार किया।
इन्होंने विश्व के अनेक प्रकाशकों से सम्बन्ध स्थापित कर अपने ग्रन्थ उनके संस्थान द्वारा तथा उनके ग्रन्थ अपने संस्थान द्वारा प्रकाशित कर भारतीय दर्शन तथा संस्कृति को समृद्ध किया । इनके अभूतपूर्व योगदान के कारण १९९२ में भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री की उपाधि प्रदान की। इसके अतिरिक्त अनेक उपाधियाँ इन्हें अलग-अलग संस्थाओं से मिल चुकी हैं।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ श्री शान्तिलाल जी को अपनी भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है।
कर्मयोगी श्री. नवमलजी फिरोदिया दिवंगत
कर्मयोगी, उदारचेता, महामनस्वी, स्वतन्त्रता संग्राम के वीर सेनानी तथा प्रसिद्ध उद्योगपति श्री नवमलजी फिरोदिया का दिनांक २६.३.९७ को हृदयगति रुक जाने के कारण निधन हो गया।
महाराष्ट्र के श्रीगोंदा ताल्लुके में स्थित कोलगांव में, १९१० में आपका जन्म हुआ था। आपका पूरा नाम नवमलजी कुंदनमलजी फिरोदिया था। आप स्वभाव से अत्यन्त मृदु, स्पष्टवक्ता तथा त्याग, निष्ठा और दया के प्रतिमूर्ति थे । श्रद्धा से आपको 'बाबा' कहा जाता था। अनेकानेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े श्री फिरोदिया जी एक कर्मठ नेता तथा प्रखर स्वतन्त्रता सेनानी थे। अनेक संस्थाओं को आपका संरक्षण प्राप्त था। आप वीरायतन संस्थान के अध्यक्ष थे। इसके अतिरिक्त भाऊसाहब फिरोदिया वृद्धाश्रम, पांजरापेल कुष्ठधाम, पुणे स्थित कामायनी, आदि अनेक संस्थाओं को आपका संरक्षण प्राप्त था ।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार श्री 'बाबा' के निधन पर शोकाकुल है। आपकी स्मृतियाँ ही हमारी प्रेरणास्रोत हैं।
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