Book Title: Soul Science Part 01
Author(s): Parasmal Agrawal
Publisher: Kundakunda Gyanpith

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Page 160
________________ The Doer (Kartā) and the deed (Karma) ण सयं बद्धो कम्मेण सयं परिणमदि कोहमादीहिं । जइ एस तुज्झ जीवो अप्परिणामी तदा होदि|121m अपरिणमंतम्हि सयं जीवे कोहादिएहिं भावहिं। संसारस्स अभावो पसज्जदे संखसमओ वा॥122॥ पोग्गलकम्मं कोहो जीवं परिणामएदि कोहत्तं । तं सयमपरिणमंतं कहं णु परिणामयदि कोहो॥123।। अह सयमप्पा परिणमदि कोहभावेण एस दे बुद्धी। कोहो परिणामयदे जीवं कोहत्तमिदि मिच्छा।।1241 कोहुवजुत्तो कोहो माणुवजुत्तो य माणमेवादा। माउवजुत्तो माया लोहुवजुत्तो हवदि लोहो॥125॥ Na sayam baddho kamme na sayam parinamadi kohamādihim. Jai esa tujjha jivo apparinami tadā hodi. ||121|| Aparinamantmhi sayam jīve kohādiehim bhāvehim. Samsārassa abhāvo pasajjade samkhasamao vā.||122||| Poggalakammam koho jivam pariņāmaedi kohattam. Tam sayamaparinamantam kaham nuparināmayadi koho.||123|| Aha sayamappā pariņamadi kohabhāveņa esa de buddhi. Koho parināmayade jīvam kohattamidi micchä.||124|| Kohuvajutto koho māņavajutto ya māṇamevādā. Māuvajutto māyā lohuvajutto havadi loho. ||125||| न स्वयं बद्धः कर्मणिन स्वयं परिणमते क्रोधादिभिः। यद्येषः तव जीवोऽपरिणामी तदा भवति।।121॥ अपरिणममाने स्वयं जीवे क्रोधादिभि: भावैः। संसारस्याभाव: प्रसजति सांख्यसमयो वा।।122|| पुद्गलकर्म क्रोधो जीवं परिणामयति क्रोधत्वम् । तं स्वयमपरिणममानं कथं नु परिणामयति क्रोधः।।123॥ अथ स्वयमात्मा परिणमते क्रोधभावेन एषा ते बुद्धिः । क्रोधः परिणामयति जीवं क्रोधत्वमिति मिथ्या।।124।। क्रोधोपयुक्तः क्रोधो मानोपयुक्तश्च मान एवात्मा। मायोपयुक्तो माया लोभोपयुक्तो भवति लोभः ।।1251

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