________________
धर्मदेव-कूर्मापुत्र चरित्र भावधर्म का माहात्म्य
असुरो और सुरो के इन्द्र जिसके चरण-कमल को नमन करते हैं। एसे श्रीवीरजिन को नमस्कार कर के मैं कूर्मापुत्र के संक्षिप्त
चरित्र को कहूँगा । ॥ राजगृह नगर में श्रीवीरप्रभु पधारते हैं । २-३. राजगृह नामक श्रेष्ठ नगर है । जिसमें रहनेवाले लोग नय-नीति
की रेखा-मर्यादा वाले है । राजगृह नगर में (स्वास्थ्यादि गुण हेतु) श्रेष्ठ 'गुणशिलक' नामक बड़ा उद्यान है । वहाँ जब श्रीवर्धमान जिन पधारते हैं । (३) तब देवोने मिलकर धर्म उपदेश के लिए 'समवसरण' = धर्मसभा की रचना करी । समवसरण में आनेवालों के पाप कर्म का अपसरण होता है; मानो यह बात सूचित करने के वास्ते, यह समवसरण, श्रेष्ठ मणि, सुवर्ण और चाँदी के बने हुए 'तीनगढ़' से झगमगाता
था।
४-७. (४) समवसरण में बिराजमान श्रीवर्धमान जिनवर का शरीर भी
सुवर्ण जैसे वर्णवाला है। अतः सुवर्ण की भाँति चमक रहा है। ऐसे श्रीवीरजिन समन्दर के समान गम्भीर ध्वनि से, दान आदि चारों प्रकार के धर्म का उपदेश फरमा रहे थे-जैसा कि-दान
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org