Book Title: Sirikummaputtachariam
Author(s): Jinmanikyavijay, Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 115
________________ ८८ कूर्मापुत्रचरित्र ४५. माता-पिता ने कुमार के पुनर्मिलन के बारे में पूछने पर' हमारे फिर से आने के समय, आपको कुमार का पुनर्मिलन होता' ऐसा केवली भगवन्त ने बताया । ४६. इस तरह की घटना सुनकर, वैराग्य पाकर, राजा-रानी ने अपने छोटे पुत्र को राज्य सौंप कर, केवली गुरु सुलोचनमुनि के पास दीक्षा का स्वीकार किया । ४७. उग्र तप और चारित्र में तत्पर हुए, उग्रतप के आचरण में तत्पर हुए और उनके तप और चारित्र 'पर' उत्कृष्ट थें । अत एव निर्दोष आहार की गवेषणा (भिक्षा प्राप्त) करने में तत्पर होते थे। मन-वचन और तन की गुप्ति शास्त्रोक्त पद्धति से नियमन करने थें । इस तर विहार (=संयमपूर्वक जीवनयापन) करते थे । ४८. एक गाँव से दूसरे गाँव में विचरण करते करते केवली सुलोचन मुनि दुर्लभ कुमार के दीक्षित बने हुए माता-पिता के साथ, एक दिन दुर्गिल उद्यान में पुनः पधारें । ४९. 'तब कुमार का आयुष्य अल्प है' ऐसा अपने अवधिज्ञान से जानकर भद्रमुखी यक्षिणी-केवलज्ञानीगुरुभगवन्त को नतमस्तक होकर पूछती है। ५०. हे भगवन् ! जो आयुष्य अल्प हो, उसे बढाया कैसे जाता है ? तब केवलज्ञान के प्रकाश में सब बावतों को निहारते हुए सुलोचन मुनि बोले कि५१-५३. तीर्थंकर-गणधर-चक्र वती-बलदेव-वासुदेव यह सब अतिबलवन्त होते है फिर भी अपनी तूटी आयु का संधान नही कर सकते । जो देव अपनी ताकत से जम्बूद्वीप को छत्र बनावें। और मेरु पर्वत को दण्ड, फिर भी अपनी तूटली आयु को सांध नहीं सकते । • तूटी हुई आयु को जोड़ने के लिए Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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