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३९.
धर्मदेव-कूर्मापुत्र चरित्र भावधर्म का माहात्म्य
८७ [ =औदारिक देहधारी मानव स्त्री या मादा पशु] के बीच । (३) छवि (= औदारिक देहवाले पुरुष) और देवी के
बीच, तथा (४) 'छवि' और 'छवि' के बीच । ३७-३८. इस ओर नगर में कुमार के विरह में राजा-रानी दुःखी हो
गए थे । और चारों ओर ढुंढने पर भी कुमार का पता न लगा। (३८) चूँकि देव जिसका अपहरण करते है, उसका पता कैसे लगे ? वास्तव में देवों और मानवों की शक्ति में बहोत बड़ा अन्तर होता है। अब कुमार के वियोग से दुःखी माता पिता ने केवलज्ञानी मुनिराज को 'कुमार के बारे में पूछा-हे भगवन्त ! हमारा पुत्र
कहाँ गुम हो गया है ? ४०. तब केवलीगुरुभगवन्त ने कहा कि यह बात सावधान हो कर
सुनो-आपके कुमार का व्यन्तरी ने अपहरण किया है । ४१-४३. केवलीगुरुमहाराज के वचन सुनकर, राजा-रानी को 'देवों के
अपवित्र मानव के अपहरण करने से अचरज हुआ । (४२) क्योंकि आगमों में कहा गया है, कि "मानव लोग की दुर्गन्ध ९०० (नव सौ) योजन तक उपर जाती है । इसी कारन देवो मानव लोक में नही आते है । (४३) यद्यपि तीर्थङ्कर भगवन्तों के कल्याणक, (= तीर्थंकरो के जीवन के पाँच श्रेष्ठ अवसर-माता के गर्भ मैं उत्पत्ति, जन्म, दीक्षा, कैवल्यज्ञान, और मोक्ष) महामुनियों के महातप, पूर्वभव का अपना राग-स्नेह इत्यादि कारणों से ही देवो मानवलोक में
आते हैं"। ४४. जब केवलीभगवन्त ने व्यन्तरी और कुमार के पूर्वभव का स्नेह
सम्बन्ध दर्शाया । तब सब लोग बोल ऊठे 'अहो कर्म का परिणाम अतीव बलवन्त है।
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