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कूर्मापुत्रचरित्र ६२. इसके बाद व्यन्तरदेवी, अपनी शक्ति से कुमार के अपने नगर के
उद्यान में, केवलीमुनि के पास, कुमार को ले गई, और कुमार भी
केवलीभगवन्त को वन्दन कर, उचित स्थान पर बैठा। ६३. मुनि बने हुए राजा-रानी वहाँ बैठे थे, कुमार को देखते ही
स्नेहवश रोने लगे। ६४. कुमार तब अपने माता पिता = राजा-रानी को पहेचान नहीं
पाता है, इस लिए केवली ने कुमार को अपने माता-पिता जो
मुनि बने हुए है-वन्दन करने को कहा । ६५. मेरे माता-पिता को दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा क्यों हुई ? कुमार के
पूछने पर केवलीने कुमार को 'पुत्र वियोग का कारन दिखाया। ६६-६७. इस दरमियान मेघ को देख मोर, इन्द्र को देख चकोर, सूर्य
को देख चक्रवाक, अपनी माँ को देख बछड़ा, सुगन्ध फैलानेवाली वसन्त रितु को देख कोयल-आनन्दित होते हैं । वैसे ही कुमार भी केवली के वचन से अपने मातापिता को
पहेचान कर आनन्दित हो ऊठा और उसके रोंगटे खड़े हो गए । ६८-६९. मुनि बने हुए अपने मातापिता के गले लगकर रो पड़ा तब
यक्षिणी ने मधुरवचनों से चूप कीया, दिलासा दिया । (६९)
और अपने आँचल से उनके आँसु पोंछे-यही तो महामोह का
अद्भुत विलास है। ७०. अपने माता-पिता के दर्शन से आन्दित बने कुमार को यक्षिणी
केवली गुरु के पास बिठाती है । ॥ मनुष्यभव चिन्तामणिरत्न जैसा दुर्लभ है ॥ ७१. अब सब के उपकार हेतु, केवलीभगवन्त ने अमृतरस के प्रवाह
समान धर्मदेशना शुरू की
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