Book Title: Siddhamatruka Prakaranni Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri, Dhurandharvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ September-2003 निर्देश, नमस्कारमाहात्म्य अने सिद्धमातृकानी रचनाओमां जडतुं आन्तरिक साम्य - आ बधां परथी आ बधी रचनाओ १३मा शतकना सिद्धसेनाचार्यनी होवानुं वधु सुसंगत जणाय छे. अने ए वात ने प्रमाणभूत समजीए तो 'शकस्तव' तथा 'नमस्कारमाहात्म्य'नुं कर्तृत्व सिद्धसेनदिवाकरसूरिना नामनी साथे जोडातुं आव्युं छे, ते धारणा बदली नाखवानी रहे छे. "सिद्धसेन' नाम आवे एटले तेनो सम्बन्ध सिद्धसेन दिवाकरजी जोडे जोडवानी रूढ प्रथा छे. तेमांये 'शक्रस्तव' माटे तो, प्राकृत सूत्रोने संस्कृतमां बदलवानी दिवाकरजी साथे जोडायेली कथाना सन्दर्भमां, अत्यन्त सहेलाईथी गळे ऊतरी जाय तेवी वात गणाय. परन्तु, कोई वातने रूढ गतानुगतिकताए मानवाने बदले प्रमाणो अने ते-आधारित ऊहापोह थकी ज मूलववी तथा विचारवी वधु उचित छे. _ 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास'मां ही.र. कापडियाए 'सिद्धमातृका' विषे नोंध आपतां तेना कर्ता आ. सिद्धसेन विषे (?१५मो शतक) आम नोंध आपी छे, जे निराधार जणाय छे. १५मा शतकमां कोई सिद्धसेनाचार्य थया होय तो ते विषे जाणवा मळ्युं नथी, अने श्रीकापडिया सामे पण तेवी कोई जाणकारी होय तेवो संकेत सुद्धा तेमणे आप्यो नथी. सिद्धमातृका प्रकरणना पद्य १-१०मां संभवतः 'अहं'नो महिमा वर्णवायो छे. ११-१५मां 'भले' तरीके ओळखावाती आकृतिनुं वर्णन छे. १६-२१मां 'मींडी' एटले के शून्य-०नुं स्वरूपवर्णन थयुं छे. २२-४४ मां अनेक विकल्पो थकी शून्य पछी मूकाती बे रेखा (ऊभी लीटी) - ॥ नुं विशद वर्णन छे. आ रेखावर्णनने 'नमस्कारमाहात्म्य' ना 'नमो सिद्धाणं' पदवर्णनप्रकाशगत 'द्धा' अक्षरमांना 'द्-ध्'ना संयोगनुं वर्णन करतां पद्यो साथे सरखावीए तो आ बन्ने कृतिओ एककर्तृक होवानी सहज प्रतीति थाय. ४५-५०मां प्रणवमन्त्र अनुं, ५१-५४मां 'नमः' के नमः' मुं, ५५मां 'नमः' मुं, ५६मां 'सिद्धम्'नुं स्वरूपालेखन छे. ५७-५८मां नाभिमां षोडशदल कमलमां, हृदयदेशे चतुर्विंशतिदल कमलमां अने मुखमां अष्टदल कमलमां, समग्र वर्णमाला-मातृकानुं ध्यान धरनार मनुष्य सर्वज्ञतुल्य थाय छे, ते वात निर्देशवामां आवी छे. 'मातृकाध्यान' ए ध्याननो एक मान्य अने सिद्ध प्रकार छे. ५९-६२मां सिद्ध-मातृकानुं माहात्म्यवर्णन थयुं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17