Book Title: Siddhachal Vando Re Nar Nari
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Mahendrasagar

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को खो देता है तो भगवान तक पहुंच जाता है। पूर्वाचार्यों के स्तवनों में आज भी ऐसा चमत्कार है कि व्यक्ति स्तवन गाते गाते खुद भी खो जाता है। सब से सरलमार्ग है भक्ति। इस मार्ग में आराधक सहजता से जुड़ जाय और भगवान तक पहुंच जाय उस भावना से मुनिश्री महेन्द्रसागरजी म. एवं पूर्ण सहयोगी मुनिश्री राजपद्मसागरजी म. तथा मुनिश्री कल्याणपद्मसागरजी म. ने प्राचीन अर्वाचीन स्तवन-स्तुति-गीतों का चुन चुन कर संकलन किया है। सभी को उपयोगी बने ऐसी शुभ भावना से पुस्तक रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। पुस्तक प्रकाशन में कोबा स्थित श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के विद्वान पंडितवर्य श्री मनोजभाई एवं कम्प्यूटर विभाग में कार्यरत - श्री केतनभाई एवं संजय गुर्जर आदि का उत्साहजन्य सहयोग प्राप्त हुआ हैं। उनको भी मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। पुस्तक प्रकाशन में जिन्होंने अपनी लक्ष्मी को पुण्य लक्ष्मी बनाने के लिए उदारता से लाभ लिया है उनको भी दिल से आशीर्वाद है। प्राचीन अर्वाचीन स्तवनों • गीतों में कही कोई त्रुटि/स्खलना रह गई हो तो मिच्छामि दुक्कडम्। पाठक गण सुधारकर उपयोग करेंगे। श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ज्ञानतीर्थ कोबा गांधीनगर (गुजरात) पं. विनयसागर गणि दि. ७-६-२००६ For Private and Personal Use Only

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