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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१७ आचार्य विजयनेमिसूरीश्वरजी ज्ञानशाळा, खंभातनी प्रतने आदर्शप्रत तरीके राखी कुल १२थी पण वधु हस्तप्रतोनां आधारे संशोधन-संपादन कर्यु छे तेमां जेसलमेर, पाटण, कोबा विगेरे प्रसिद्ध ज्ञानभंडारोमां संग्रहीत प्रतोनो पण आ संपादन कार्यमां उपयोग कर्यो छे.
आ वृत्तिमां सूत्रगत तमाम बाबतो पर विशद प्रकाश पाथरवामां आव्यो छे. तेमां नियमोनी स्पष्टता माटे ढगलाबंध उदाहरण-प्रत्युदाहरण सुचारु पद्धतिथी करेल छे.
जेनाथी प्राकृत व्याकरण- अध्ययन करनार-करावनारने सुगमता रहे, ग्रंथ प्रत्ये रुचि वधे तेवा आशयथी कृतिनुं संपादन कर्यु छे.
प्रथम भागमा उपाध्याय श्री विमलकीर्तिविजयजीए ग्रंथनी संपादन पद्धति विषयक परिचय आपेल छे, उपरांत प्रस्तावना अंतर्गत “प्राकृतव्याकरण क्षेत्रे एक सु-संस्कृत कार्य”मां प्राकृतव्याकरणनो सामान्य परिचय आप्यो छे. त्यारबाद ग्रंथमां उपयुक्त सांकेतिक शब्दो अने प्रारंभिक ३ पादनो समावेश कर्यो छे. ____बीजा भागमां अंतिम ४थो पाद अने अंतमां विविध प्रकारना ९ परिशिष्टो आपेल छे. परिशिष्ट-१मां संपादनोपयुक्त ग्रंथोनी सूचि, परिशिष्ट-२ अंतर्गत पादानुसार मूलसूत्रोनी सूचि, परिशिष्ट-३मां मूलसूत्रोनी अकारादिक्रम प्रमाणे सूचि, परिशिष्ट४मां संक्षिप्त विषयानुक्रम, सूत्रसंख्या अने साथे चतुर्थपादमां समाविष्ट महाराष्ट्रीय, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची अने अप्रभंश संबंधी सूत्रनी सूचि, परिशिष्ट-५मां ४६ आर्षप्रयोग, परिशिष्ट-६मां प्राकृतव्याकरणान्तर्गत प्रयोजायेलां उदाहरणोनी अकारादिक्रम प्रमाणे सूचि, परिशिष्ट-७मां प्राकृतव्याकरणमां समाविष्ट श्लोको तथा वाक्योनी सूचि, परिशिष्ट-८ अंतर्गत 'देशीशब्दकोश', 'देशीशब्दसंग्रह, 'पाईअसद्दमहण्णवो, 'अपभ्रंशव्याकरणम्' वगेरे ग्रंथोना आधारे देशी शब्दोनी अकारादि क्रमानुसार सूचि तथा परिशिष्ट-९ 'चतुर्थपादान्तर्गत धात्वादेशा' मां अकारादिक्रम प्रमाणे देशीधातुओना अर्थोनो उल्लेख ‘पाइअसद्दमहण्णवो'ना आधारे विस्तृत सूचि आपी छे. आम, उपाध्यायजीए ९ परिशिष्टोमां विविध महत्त्वपूर्ण सूचनाओनो संग्रह कर्यो छे.
सर्वतो दृष्टिए प्रस्तुत ग्रंथ प्राकृत भाषानां अभ्यासुओ, साधु-साध्वीजी भगवंतो, संशोधको तथा भाषाकीय विद्वानो माटे खूब ज उपयोगी ग्रंथ छे.
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