Book Title: Shrutsagar 2017 09 Volume 04 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 September-2017 SHRUTSAGAR ९. सुस्थितसूरि अने सुप्रतिबद्धसूरि ___ आ बन्ने आचार्यो एक ज गुरुनां शिष्य अने व्याघ्रापत्य गोत्रनां छे. बन्नेए उदयगिरि, खंडगिरिनी गुफामां करोडवार सूरिमंत्रनो जाप को हतो तेथी निर्ग्रन्थगच्छनुं बीजु नाम कोटिकगच्छ पड्यु. 'आ गच्छनो परिचय हीरसौभाग्य(सर्ग-४ श्लो.४४)मां आ प्रमाणे छे: प्रीतिं सृजंति पुरूषोत्तमानां दुग्धाम्बुराशेरिव पद्मवासा। हृदाजिनं बिभ्रत आविरासीत् तत्सूरियुग्मादिह कौटिकाख्यः॥ आ सूरिमहाराजे ज्यां जाप को हतो ते स्थाने महामेघवाहन राजा खारवेले एक स्थान बनावी त्यां शिलालेख कोतराव्यो हतो. सुस्थितिसूरि वी.सं. ३७२मां स्वर्गवासी थयां. आ समये आर्य खपुटाचार्य विद्यमान हतां. 1. आर्य महागिरिजीना बीजा शिष्यो बहुल अने बलिस्सह थया. तेमां बलिस्सहना शिष्य उमास्वाति वाचक थया. तेमणे तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, प्रशमरति, श्रावकप्रज्ञप्ति आदि पांचसो प्रकरणो रच्यां हतां. तेमना शिष्य श्यामाचार्यजी थया. तेमनुं बीजुं नाम कालिकाचार्य हतुं अने तेमणे इंद्रने निगोदनुं स्वरूप समजाव्युं हतुं. तेमणे पन्नवणा सूत्र रच्यु हतुं. तेओ वीरनि. सं. ३७६ मां स्वर्गे गया. तेमना शिष्य सांडिल्प थया, जेमणे जीतमर्यादा रच्युं हतुं. 2. महामेघवाहन राजा खारवेल, महाराजा मेडानो वंशज हतो. नंदराज ऋषभदेवनी जे सुवर्ण प्रतिमा लई गयो हतो तेने ते पुष्यमित्रना समयमां तेने हरावी कलिंगमां पाछी लाव्यो हतो अने तेनी कुमारगिरि पर्वत उपर आर्यसुस्थितसूरि पासे प्रतिष्ठा करावी हती. तेना वखतमां बार दुकाळ पडवाथी आगमज्ञान नष्ट थतुं जोइ दुकाळ उतर्या पछी ते वखतना प्रसिद्ध आचार्यो-आर्य सुस्थितसूरि, सुप्रतिबद्धसूरि, बलिस्सह, बोधिलिंग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षावाचार्य, उमास्वाति, श्यामाचार्य वगेरे कुल पांचसो साधुओ; आर्या पोईणी वगेरे सातसो साध्वीओ, कलिंगराज, भिक्षराज, सीवंद, चूर्णक, सेलक वगेरे श्रावको; कलिंक महाराणी पूर्णमित्रा आदि सातसो श्राविकाओ : एम चतुर्विध संघे भेगा मळी पूर्वधरोए आगमज्ञान संग्रा. आ रीते आ राजा द्वादशांगीनो संरक्षक बन्यो. खारवेल वीरनि. सं. ३३० मां स्वर्ग गया पछी तेनो पुत्र वक्रराय पण जैनधर्मी थयो. ते वीरनि.सं. ३६२ मां स्वर्गे गयो. तेनो पुत्र विदरराय पण जैनधर्मी हतो. “हिमवंत थेरावली”ना उल्लेख प्रमाणे ते वीरनि. सं. ३७२ मां स्वर्गे गयो. खारवेलनो हाथीगुफानो लेख प्रगट थइ गयो छे. 3. आर्य खपुटाचार्यना समय माटे मतभेद छे. 'वीरवंशावली' अने ‘तपागच्छ पट्टावली'मां तेमने आर्य स्थितसरिजीना समयमां बताव्या छे. उपाध्याय धर्मसागरजी तेओ वीरनि.सं. ४५३ मां थयानं लखे छे. 'प्रभावक चरित्र मां वीरनि.सं.४८४नो उल्लेख छे. तेओ महाप्राभाविक आचार्य हता. 'प्रभावक चरित्र'मां तेमने पादलिप्ताचार्यना विद्यागुरू तरिके वर्णव्या छे. 'निशीथचूर्णि'मां तेमने विद्यासिद्ध तरीके वर्णव्या छे. पाटलीपत्रनो राजा दाहड जे जैन साधओने हेरान करतो हतो तेने तेमणे योग्य शिक्षा आपी जैनधर्मी बनाव्यो हतो. (विशेष माटे ‘प्रभावक चरित्र’ जोवू) For Private and Personal Use Only

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