Book Title: Shrutsagar 2017 09 Volume 04 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 26 सितम्बर-२०१७ १०. इंद्रदिन्नसूरि आमनो वधु परिचय नथी मळतो. वी.सं.नी पांचमी शताब्दीना आ महाप्रतापी जैनाचार्य थया. एमना समकालीन बीजा केटलाय प्रसिद्ध आचार्यो थया छः वी.सं.४५३मां गर्दभिल्लनो नाश करावनार कालिकाचार्य, उ. धर्मसागरजीना मत प्रमाणे आर्य खपुटाचार्य; वी.सं.४६७मां आर्यमंगु, वृद्धवादीसूरि, सिद्धसेन दिवाकर, पादलिप्तसूरि वगेरे. इंद्रदिन्नसूरिजीना नाना गुरूभाइ प्रियग्रंथसूरि थया. तेमणे अजमेर पासेना हर्षपुर नगरना ब्राह्मणोने प्रतिबोधी यज्ञमां थतो बकरानो बलि बंध कराव्यो हतो अने जैनशासननी प्रभावना करी हती. तेओ काश्यप गोत्रना हता. विशेष माटे जुओ कल्पसूत्र सुबोधिका. वीर वंशावलीमां' पण संक्षिप्त परिचय मळे छे. कालकाचार्य संबंधी खुलासो - आ नामना चार आचार्यो थया ते आ प्रमाणे : १. इंद्रप्रतिबोधक, प्रज्ञापनासूत्रना कर्ता अने जे श्यामाचार्यना नामथी प्रसिद्ध छे ते कालिकाचार्य वी.सं.३२० थी ३३५ सुधीमां थया. २. अविनीतशिष्यत्यागी, आजीविको पासे निमित्त शास्त्रनुं अध्ययन करनार, गर्दभिल्ल राजानो नाश करावनार, इंद्रना प्रश्नना उत्तरदाता-इंद्रने निगोदनुं स्वरूप समजावनार, पांचमना बदले चोथनी संवत्सरी प्रवर्तावनार कालिकाचार्य, जेमनो उल्लेख उपर करवामां आव्यो छे ते. तेओ खपुटाचार्य अने पादलिप्तसूरिजीना समकालीन हता. तेमणे पंजाबमां भावडागच्छ स्थाप्यो हतो. तेओ वी.सं.४५३मां थया. ३. विष्णुसूरिजीना शिष्य कालकाचार्य. ४. देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणना समकालीन, भूतदिन्नसूरिजीना शिष्य, माथुरी वाचनामां सहायक, आनंदपुरमां सभासमक्ष-चुतर्विधसंघ समक्ष चोथना दिवसे कल्पसूत्रनुं वाचन शरू करनार आ कालिकाचार्य वी.सं.९८०मां, वाचना भेदथी ९९३मां थया. (उत्तराध्ययन नियुक्ति; विचारश्रेणि, रत्नसंचय प्रकरण, कालसप्ततिका, पट्टावली समुच्चय पृ.१९८ना आधारे.) इंद्रदिन्नसूरिना समकालीन उपर लखेल आचार्योनो ढूंक परिचय आ प्रमाणे छे : आर्यमंगु-नंदीसूत्रनी गुर्वावलीना लखवा प्रमाणे तेओ आर्य समुद्गना शिष्य हता. तेओ वी.सं.४६७मां थया. जिनप्रभसूरि मथुराकल्पमां तेमना माटे लखे छे के For Private and Personal Use Only

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