Book Title: Shrutsagar 2016 08 Volume 03 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org क्षमापना पर्व - संदेश - राष्ट्रसंत प.पू. आ. श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “खमीयव्वं खमावियन्वं, उवसमियन्वं उवसमावियन्वं जो उवसमइ तस्स अत्थि आराहणा, जो न उवसमइ तस्स नत्थि आराहणा” (अर्थ - क्षमा मांगनी चाहिए और क्षमा देनी चाहिए, उपशांत होना चाहिए और दूसरों को शांत करना चाहिए. जो कषाय से शांत होता है वह आराधक है, जो कषाय ग्रस्त रहता है वह विराधक है.) पर्युषण महापर्व को पाकर हमें विशेष करके धर्माराधना करनी चाहिए. भवोभव के कुसंस्कार, वर्षभर के किये हुए पापाचरण का प्रक्षालन करने का एक मात्र अवसर संवत्सरी प्रतिक्रमण है. आत्मा को उस प्रतिक्रमण के योग्य बनाने के हेतु पर्युषण के 8 दिनों में से 3 दिन श्री अष्टाह्निका प्रवचन का श्रवण व 5 दिन श्रीकल्पसूत्रजी के सभी व्याख्यानों का श्रवण अवश्य करना चाहिए. पर्युषण के प्रारंभिक 3 दिन में अष्टाह्निका के प्रवचन में- 1. पाँच कर्तव्य, 2. वार्षिक 11 कर्तव्य, 3. पौषधव्रत का महत्त्व बताया जाता है. बाद में 5 दिन श्रीकल्पसूत्रजी का वांचन किया जाता है, उसमें तीन अधिकार- 1. जिनेश्वरों के चरित्र, 2. स्थविरावली, 3. सामाचारी के व्याख्यान एवं संवच्छरी के दिन श्रीबारसासूत्र का श्रवण किया जाता है. साथ-साथ पर्युषण दौरान पाँच कर्तव्य अवश्य करने चाहियें यथा- 1. अमारी प्रवर्तन, 2. साधर्मिक भक्ति, 3. अट्ठम तप, 4. चैत्य परिपाटी, 5. समस्त साधु भगवंतों को वंदन. इतना करने के पश्चात् आत्मा को कोमल परिणामी बनाकर सर्व जीवों से अंतःकरण पूर्वक क्षमायाचना करके संवत्सरी प्रतिक्रमण करना चाहिए. जिनपूजा, पाँच कर्तव्य एवं प्रवचनादि से भावित-प्रभावित आत्मा ही अन्य जीवों के प्रति करुणावंत बनकर क्षमा चाहने वाला व क्षमा देने वाला बन सकता है. पर्युषण का व समस्त जीवन का सार क्षमा ही है. क्षमा पर्युषण का प्राण है, इसके बिना प्रतिक्रमण व पूजादि आराधना का खास कोई महत्त्व नहीं रहता. सभी मोक्षाभिलाषि आत्मा पर्युषण महापर्व की आराधना में उत्साह सह प्रवृत्त बनें यही शुभाशीष. पद्मसागर सूटि For Private and Personal Use Only

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