Book Title: Shrutsagar 2016 04 Volume 02 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 17 April-2016 श्री लक्ष्मीसागरसूरिरास ॥हा॥ श्री गुरुचरणांबुज नमुं, रमुंशारदानें ध्यान । जास पसाये पामीये, सरस वयणविज्ञान ।।१।। ॥धन धन श्रीरिषिराय अनाथी - ए देसी॥ श्रीविजेलक्ष्मीसूरी(रि) ची(चि)रंजीवो, जिहां लगे सूरज-चंदा रे। जेहना गुणनो पार न जाणुं, दीठे होये आणंदा रे ॥१॥ (आंकणी) श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... मरुधर देशमें आबुजी पासें, पालडी गाम ते सोभे रे। सेठ-महाजन समृद्धिपूरा, देखी धनद ते पोसे रे ॥२॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... हेमराज ते वसतीमांहे, पोरवाड वंशे छे जेहनी रे। तेहनी भारया आणंद नामें, रतिपति जेसि प्रीत तेहनी रे ॥३॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... एक दिन आणंद सूता सज्यायें', रात्रि पाछली घडी दोय रे । सुपन लघु तिहां आणंदे आणंद, जागी उठ्या तव सोय रे ॥४॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... सुभ स्वप्न देखी फिरी नवि उंघे, प्रभुजीना गुण गावे रे। दःस्वप्न देखी निंद्रा फिरी करवी, स्वप्नसास्त्रे कहावे रे ॥५॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... सुवर्ण केरो परबत मेरू, दीठो तिहां सुविशाल रे। उठीनें कहे स्वामीनें ततखिण, थास्ये मंगलमाल रे ॥६॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... 1.शय्यामां For Private and Personal Use Only

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